(दिव्यराष्ट्र के लिए डॉ दिक्षिता अंजवानी)
लोक आस्था, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है गोगा नवमी। यह पर्व विशेष रूप से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में बड़े हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इसे ‘गोगाजी की पूजा’ या ‘गोगामेड़ी का मेला’ भी कहा जाता है। गोगा नवमी को नाग पंचमी के बाद भाद्रपद मास (भादों) की कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। लोक मान्यता के अनुसार यह पर्व नागदेवता के पूजन और लोकनायक वीर गोगाजी की स्मृति से जुड़ा हुआ है।
1. गोगा नवमी का ऐतिहासिक और पौराणिक आधार
गोगा नवमी का मुख्य आधार लोककथाओं और इतिहास का अद्भुत संगम है।
गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (वर्तमान चुरू ज़िले में) चौहान वंश में हुआ। उनका जन्म भाद्रपद कृष्ण नवमी को हुआ, इसलिए इस तिथि को गोगा नवमी के रूप में मनाया जाता है। लोककथाओं में उन्हें ‘जहारवीर गोगाजी’, ‘गोगा वीर’ और ‘गोगा चुराणी’ भी कहा जाता है। गोगाजी को नागवंशियों का संरक्षक और सांपों से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है।
गोगाजी के जन्म से संबंधित अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि उनकी माता बचपन से ही भगवान शिव और नागदेवता की अनन्य उपासक थीं, और उनके आशीर्वाद से ही गोगाजी का जन्म हुआ। जन्म से ही उनमें अद्भुत शक्ति और साहस का संचार था। वे बाल्यकाल से ही सांपों के साथ खेलते थे और उन्हें बिना किसी भय के नियंत्रित कर लेते थे। यही कारण है कि ग्रामीण समाज उन्हें आज भी नागों का स्वामी और रक्षक मानता है।
गोगाजी न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि न्यायप्रिय शासक और समाज सुधारक भी माने जाते हैं। उन्होंने अपने समय में जनकल्याण को सर्वोपरि रखा और हर वर्ग की रक्षा की। लोकमान्यता है कि उन्होंने अनेक युद्धों में अपने साहस और शौर्य का परिचय दिया तथा जनसामान्य को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाई। गोगाजी की ख्याति सीमित क्षेत्र तक नहीं रही, बल्कि पड़ोसी प्रदेशों तक फैल गई। इसीलिए आज राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक उनके प्रति आस्था देखने को मिलती है।
उनके प्रति श्रद्धा केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक समरसता और लोकआस्था का भी प्रतीक है। हिन्दू और मुसलमान दोनों उन्हें अपने-अपने ढंग से पूजते हैं। मुसलमान समुदाय उन्हें ‘जाहर पीर’ कहकर याद करता है। गोगाजी का यह स्वरूप भारतीय संस्कृति की उस अनूठी परंपरा को दर्शाता है जिसमें लोकनायक की पूजा धर्म और जाति से परे होकर की जाती है।
पौराणिक संबंध — गोगाजी को भगवान शिव और नागदेवता का अंश माना जाता है। लोक परंपरा में यह मान्यता है कि गोगाजी ने नागों को वश में किया और उन्हें मनुष्य के कल्याण हेतु उपयोग में लाया। उनके साथ गोगा बीन और जाहरवीर गाथाएं जुड़ी हैं, जिन्हें लोकगीतों और कवित्त के रूप में गाया जाता है।
गोगाजी का नाम केवल वीरता और धर्मनिष्ठा के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और धार्मिक सौहार्द्र के प्रतीक के रूप में भी लिया जाता है। लोककथाओं के अनुसार गोगाजी ने मुस्लिम संत गोरखनाथ और अन्य साधुओं से भी दीक्षा प्राप्त की थी। यही कारण है कि हिन्दू उन्हें वीर गोगाजी और मुसलमान उन्हें जाहर पीर के नाम से पूजते हैं। इस तरह गोगाजी की परंपरा धार्मिक सीमाओं से परे जाकर लोक आस्था का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करती है।
इतिहासकार मानते हैं कि गोगाजी का व्यक्तित्व 10वीं से 11वीं शताब्दी के आसपास रहा होगा। उस काल में समाज पर सांपों के भय और प्राकृतिक आपदाओं का गहरा असर था। गोगाजी को नागों के देवता के रूप में स्थापित करने का एक प्रमुख उद्देश्य समाज में सुरक्षा और निर्भयता की भावना उत्पन्न करना था। उनकी गाथाओं और लोककथाओं ने ग्रामीण समाज में साहस और आत्मबल जगाया।
गोगाजी की स्मृति में राजस्थान के गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में भव्य समाधि स्थल है, जहाँ हर वर्ष विशाल मेला लगता है। यह स्थल हिन्दू-मुस्लिम एकता का अद्वितीय प्रतीक है, जहाँ श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के गोगाजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यही कारण है कि गोगा नवमी न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि भारतीय संस्कृति में सामाजिक एकजुटता और लोकनायक पूजा की सजीव परंपरा का प्रतीक बन गई है।
2. गोगाजी का महत्व और मान्यता
गोगाजी को विशेष रूप से सर्पदंश से मुक्ति दिलाने वाले देवता माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग विश्वास करते हैं कि यदि किसी को सांप काट ले तो गोगाजी की पूजा और ‘गोगा बीन’ बजाने से जीवन की रक्षा हो सकती है। गोगा नवमी का पर्व लोकएकता और सामुदायिक आस्था का प्रतीक है। इसमें सभी जाति-धर्म के लोग भाग लेते हैं। उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष लोकनायक भी माना जाता है, क्योंकि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल हैं। मुस्लिम समुदाय उन्हें ‘जाहर पीर’ कहकर श्रद्धा अर्पित करता है।
3. गोगा नवमी की पूजा और अनुष्ठान
भाद्रपद मास की कृष्ण नवमी को गोगाजी की पूजा की जाती है। यह तिथि सामान्यतः नाग पंचमी के कुछ दिनों बाद आती है।
1. पूजा की विधि – घर और गांवों में गोगाजी के थान (गोगा पीर की चौकी) बनाए जाते हैं। मिट्टी से बने या पत्थर पर अंकित गोगाजी के प्रतीक की पूजा की जाती है। गोगाजी का ध्वज (झंडा) गाड़ा जाता है, जिस पर नीली चुनरी चढ़ाई जाती है। महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं।
2. भजन और लोकगीत – इस दिन गोगाजी के भजन, गाथाएं और ‘गोगा बीन’ गाई जाती है। गोगाजी के भक्त उनके नाम से ‘जाहरवीर की जय’ या ‘गोगा जी महाराज की जय’ का उद्घोष करते हैं।
3. गोगा मेल – राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले के गोगामेड़ी में विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यहाँ हिन्दू और मुसलमान दोनों श्रद्धालु गोगाजी को मानते हैं और उनकी समाधि पर चढ़ावा चढ़ाते हैं।
गोगा नवमी का धार्मिक के साथ बहुत अधिक सांस्कृतिक महत्व है
गोगाजी से जुड़ी वीर गाथाएं ग्रामीण कलाकारों और गायक मंडलियों द्वारा गाई जाती हैं। यह गाथाएं केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोकस्मृति और संस्कृति को जीवित रखने का माध्यम भी हैं। गोगाजी की गाथाओं में उनके साहस, वीरता और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का वर्णन मिलता है। जब गायक मंडलियां ढोलक, मंजीरे और गोगा बीन की धुन के साथ वीर गाथाएं प्रस्तुत करती हैं, तो वातावरण श्रद्धा और उत्साह से भर उठता है। यह गीत ग्रामीणों को धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
गोगाजी की पूजा का सबसे बड़ा सांस्कृतिक पहलू यह है कि इसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय समान श्रद्धा से भाग लेते हैं। हिन्दू उन्हें वीर गोगाजी के रूप में पूजते हैं, वहीं मुसलमान उन्हें जाहर पीर मानकर मन्नतें मांगते हैं। गोगामेड़ी का मेला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहाँ लाखों श्रद्धालु बिना किसी धार्मिक भेदभाव के एक साथ दर्शन करने आते हैं। इस तरह गोगा नवमी भारतीय समाज की उस गहरी जड़ वाली परंपरा को दर्शाती है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता का आदर्श समाहित है।
ग्रामीण समाज में गोगाजी को नागों का स्वामी और रक्षक माना जाता है। लोग विश्वास करते हैं कि गोगाजी की पूजा से सांपों के भय से मुक्ति मिलती है। यह आस्था न केवल सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करने का भी संदेश देती है। गोगा नवमी लोगों को यह स्मरण कराती है कि प्राकृतिक शक्तियों, जैसे सांप और अन्य जीव-जंतुओं, का सम्मान करना आवश्यक है, क्योंकि वही पर्यावरणीय संतुलन के संरक्षक हैं। इस प्रकार यह पर्व सामाजिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और पर्यावरणीय चेतना का अद्वितीय संगम है।
गोगा नवमी से जुड़े प्रतीक
1. गोगा ध्वज (झंडा) : नीले रंग का ध्वज गोगाजी का प्रतीक माना जाता है।
2. घोड़ा : गोगाजी को प्रायः घोड़े पर सवार योद्धा के रूप में दर्शाया जाता है।
3. सांप : उनकी शक्ति और सांपों पर नियंत्रण का प्रतीक।
4. बीन (सांप की वाद्य) : गोगा बीन की धुन गोगाजी की स्मृति और शक्ति से जुड़ी हुई है।
गोगा नवमी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है , सांपों से रक्षा का प्रतीक है भारत में सांपों का भय हमेशा से रहा है। गोगाजी की पूजा मनुष्य को आत्मविश्वास और सांपों से रक्षा की मानसिक शक्ति प्रदान करती है। सामाजिक मनोवैज्ञानिक आधार है गोगाजी की पूजा सामुदायिक एकता और सहयोग का संदेश देती है। लोकनायक के रूप में उनकी छवि समाज में साहस और धर्म के पालन की प्रेरणा देती है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण है नाग पूजा का संबंध प्रकृति संरक्षण से है। यह हमें सर्प प्रजातियों और जैव विविधता के संरक्षण की ओर संकेत करता है।
आज भी ग्रामीण भारत में गोगा नवमी बड़े उत्साह से मनाई जाती है। शहरी क्षेत्रों में हालाँकि इसका स्वरूप सीमित हो गया है, परंतु गोगामेड़ी मेला आज भी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। गोगाजी की पूजा से सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और लोकसंस्कृति का संरक्षण होता है।
गोगा नवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि लोकजीवन, संस्कृति, और सामाजिक एकता का उत्सव है। यह पर्व हमें वीरता, धर्मपरायणता, सर्पों और प्रकृति के प्रति सम्मान, तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देता है। राजस्थान और आसपास के राज्यों की लोकसंस्कृति में गोगाजी का स्थान उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना किसी ऐतिहासिक या पौराणिक नायक का। गोगा नवमी के माध्यम से समाज आज भी अपनी जड़ों, परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा हुआ है।