“जब बेटियाँ आगे बढ़ेंगी, तभी सच्चे अर्थों में भारत आगे बढ़ेगा।”

कहने को तो आज महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर हैं, लेकिन अगर जमीनी हकीकत देखें तो तस्वीर अब भी अधूरी है।
समाज के कई हिस्सों में आज भी बेटों और बेटियों के बीच भेदभाव किया जाता है। माता-पिता बेटों को अधिक प्राथमिकता देते हैं — उन्हें बेहतर शिक्षा, संसाधन और अवसर प्रदान करते हैं, जबकि बेटियों को परंपराओं और सीमाओं में बाँध दिया जाता है।
यह सोच केवल ग्रामीण या कम शिक्षित वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि आधुनिक और शिक्षित शहरी समाज में भी व्याप्त है। यही मानसिकता समाज की सबसे बड़ी कमजोरी है, जिसे बदलना अब समय की मांग है।
बेटियों की उपलब्धियाँ – गर्व की प्रेरणा*
आज भारत की बेटियाँ हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं —
– पी.वी. सिंधु ने बैडमिंटन में भारत का नाम विश्व स्तर पर ऊँचा किया।
– मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में ओलंपिक पदक जीतकर इतिहास रचा।
– अवनी लेखरा ने पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर प्रेरणा की नई मिसाल दी।
– कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष तक भारत का परचम लहराया।
– गीता और बबीता फोगाट, निखत ज़रीन, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा — हर क्षेत्र में महिलाओं ने भारत की नई पहचान बनाई है।
– और हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से यह साबित किया कि नारी शक्ति को अब कोई रोक नहीं सकता।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं हैं — बल्कि अनेक बार उनसे आगे निकल चुकी हैं।
सोच में बदलाव जरूरी*
अब प्रश्न यह नहीं रह गया कि “क्या बेटियाँ बराबर हैं”, बल्कि यह है कि “हम कब उन्हें बराबर का अवसर देंगे?”
अगर बेटियों को समान शिक्षा, संसाधन और आत्मविश्वास मिले, तो वे न केवल परिवार बल्कि राष्ट्र निर्माण की दिशा भी बदल सकती हैं।
हर बेटी में एक सपना, एक जज़्बा और एक उज्जवल भविष्य छिपा है। हमें केवल उस पर विश्वास करना और उसे अवसर देना है।
आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें —
हर बेटी को मिलेगा बराबर का हक, बराबर का अवसर और बराबर का सम्मान।
क्योंकि जब बेटियाँ आगे बढ़ेंगी, तभी भारत वास्तव में आगे बढ़ेगा।






