
– एक आध्यात्मिक, शांत व अलौकिक दिगम्बर जैन धार्मिक व सामाजिक स्थल
जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ गुलाबी नगरी के नाम से विश्व विख्यात जयपुर नगरी अपनी स्थापना से ही धार्मिक नगरी के रूप में विख्यात रही है और जैन धर्म के अति प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है। शहर के विकास के साथ साथ बाहर बनने वाली विभिन्न कॉलोनियों में भी अनेकों जैन मंदिर बन रहे है उनमें से एक मंदिर 1008 श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर है जहाँ पर ३०० वर्ष से भी अधिक प्राचीन, मनोहारी छवि युक्त मूलनायक भगवान श्री पार्श्वनाथ विराज मान है। मन्दिर जी मे मूल वेदी के अलावा कई अन्य वेदियां भी है जहाँ पर विभिन्न तीर्थंकरों की व जैन परम्परा की विभिन्न देवियों की प्रतिमाजी भी विराजमान है।
यहाँ पर समय समय पर विभिन्न अतिशय होते आये है। इस मंदिर जी की वजह से आसपास की समाज संगठित हो रही है और मन्दिर जी मे नित्य अभिषेक, शांतिधारा, पूजन आदि दैनिक क्रियाओं में सक्रियता से लगी हुई है। यहां की पुण्य भूमि में भक्ति, श्रद्धा और आस्था का भाव सहज ही समाया हुआ है।
मंदिर का नक्शा मुनि पुगंव १०८ श्री सुधा सागर जी मुनिराज के कुशल निर्देशन में और परम गुरुभक्त एवं श्रमण संस्कृति संस्थान में तत्कालीन उप- अधिष्ठाता पद पर कार्यरत राजमल बेगस्या सा. जो सामाजिक व धार्मिक क्षेत्रों में बहुत ही सक्रिय थे, की देख रेख में बापु नगर जयपुर निवासी प्रसिद्ध वास्तुविद एच. के. शर्मा के द्वारा बनाया गया था.
जिनालय निर्माण हेतु भूमि पुजन *दिनांक 22 अगस्त2010 को मुनिपुगंव 108 श्री सुधासागर जी के पावन आशीर्वाद से बाल ब्रह्मचारी श्री प्रदीप भैया के सानिध्य में किया गया था ।
तत्पश्चात बालाचार्य 108 श्री सिद्धसेन जी मुनिराज के सानिध्य में 15 नवम्बर 2013 से 17 नवम्बर 2013 तक मूलनायक 300 वर्ष से अधिक प्राचीन 1008 श्री पांर्श्वनाथ भगवान की काले पाषाण की प्रतिमा जी को मूलवेदी में विराजमान करने हेतु वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन प्रतिष्ठाचार्य श्री निर्मल जी बोहरा के कुशल निर्देशन में सम्पन्न करवाया गया था और पूज्य बालाचार्य जी के सानिध्य में ही प्रथम वार्षिकोत्सव भी लगभग 1800 ज्यादा समाज जनो की उपस्थिति में भव्यता पूर्वक मनाया गया था।
इस पावन मन्दिर जी मे समय समय पर विभिन्न मुनिराज का प्रवास होता रहा है उनमें से प्रमुख रूप से उल्लेखनीय संतो में 108 श्री विश्रांत सागर जी मुनिराज, आचार्य 108 श्री वसुनंदी जी ससंघ कुल 15 पिच्छी सहित ने दो-दो दिन प्रवास किया। इसके अलावा आचार्य 108 श्री विराग सागर जी की शिष्या 105 श्री विशाश्री माताजी कुल 11 पिच्छी सहित तीन बार प्रवास कर चुकी है। मन्दिर जी मे मुनि 108 श्री विभंजन सागर जी, मुनि 108 श्री विश्वास सागर जी गणिनी आर्यिका 105 श्री विज्ञाश्री माताजी का भी इस क्षेत्र पर एक-एक दिन का प्रवास रहा है।*
पुण्य उदय से अपनी लेखनी के धनी और अनेकों विधान पूजाओं के रचयिता आचार्य 108 श्री विशद सागर जी ससंघ के सानिध्य में मूल वेदी के दायीं तरफ़ की वेदी में 1008 श्री आदिनाथ भगवान एवं बायीं तरफ की वेदी पर जो एक सर्प के 108 फणयुक्त 1008 श्री पाश्व॑नाथ भगवान की प्रतिमा जी को विराजमान करने हेतु लघु पंचकल्याणक एवं विश्व शान्ति महायज्ञ का आयोजन दिनांक 28 नवम्बर से 30 नवम्बर 2015 तक प्रतिष्ठाचार्य श्री विमल चंद जी बनेठा द्वारा सम्पन्न करवाया गया था।
7 मई 2017 को श्री 108 आचार्य शशांक सागर जी गुरुदेव का 35 वां अवतरण दिवस समारोह बडे़ हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पूज्य मुनि श्री का इस अवसर पर तीन दिवस का प्रवास रहा था।
पारस विहार क्षैत्र के लिए सबसे ज्यादा उल्लेखनीय बात ये रही कि इस पावन भूमि, अतिशय युक्त मन्दिर जी मे महामना, महातपस्वी, महर्षि आचार्य 108 श्री कुशाग्र नंदी जी गुरुदेव ने लगातार दो वर्षायोग चातुर्मास 2019 एवं 2020 में किया। वर्ष 2019 तो कोविड काल था लेकिन गुरुदेव के आशीर्वाद और आसपास के श्रद्धालु जनो की भक्ति से कोविड काल मे भी बहुत धर्म प्रभावना हुई। पूज्य गुरुदेव का वर्ष 2021 का वर्षायोग स्थापना यद्यपि जयपुर कीर्ति नगर में हुआ था लेकिन गुरुदेव का आशीर्वाद यहां की समाज को निरंतर मिलता रहा और कोविड काल व उसके बाद की विपरीत स्थितियों की वजह से पूज्य आचार्य श्री कुशाग्र नंदी जी का दोनों वर्षायागों के समय पारस विहार जैन मंदिर में लगभग 27 माह का र्निविघ्न्न प्रवास रहा।
पूज्य मुनिराजों के प्रवास की ये परम्परा नियमित रूप से चली आ रही है । इसी परंपरा में आचार्य 108 श्री विमल सागर मुनिराज के अंतिम दीक्षित शिष्य पूज्य उपाध्याय 108 ऊर्जयंत सागर जी मुनिराज का 45 दिन का प्रवास भी इस पावन क्षेत्र पर रहा और उनके ही पावन सानिध्य में वर्ष 2023 की फाल्गुन माह की अष्ठहानिका के पावन अवसर पर श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान प्रतिष्ठाचार्य सुरेन्द्र सल्मबूर, उदयपुर वालों के निर्देशन में बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ सानंद सम्पन्न हुआ था।
पुण्य योग से गुरुजनो के पधारने और प्रवास की कड़ी निरन्तर चलती आ रही है । वर्ष 2023 में पूज्य गणिनी आर्यिका 105 श्री भरतेश्वरमति माताजी ससंघ प्रताप नगर, जयपुर से चातुर्मास के उपरांत नेवटा के लिए विहार करते हुए तीन दिन का मंदिर जी में प्रवास रहा।
इसके बाद वर्ष 2024 का कीर्ति नगर जयपुर में वर्षायोग करने के उपरांत गणाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी मुनिराज के परम शिष्य 108 श्री समत्व सागर जी मुनिराज ससंघ का इन्दौर, मध्यप्रदेश के लिए विहार करते हुए मंदिर में मंगलप्रवेश हुआ। मुनि संघ के मंदिर जी मे दर्शन करते हुए और समाज के पुण्य योग से पूज्य मुनि संघ ने अष्टधातु की श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान कराने की भावना व्यक्त की और तत्काल ही
स्थानीय सोगाणी परिवार ने मुनि श्री समत्व सागर जी मुनिराज से शुभ मुहूर्त पूछ कर बह्मचारी भैया ऋषभ सोगाणी के निर्देशन में विधिपूर्वक मूल वेदी मे 1008 श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमाजी विराजमान की गई
पूज्य महामना, महातप शिरोमणी, महर्षि आचार्य 108 श्री कुशाग्रनंदी जी गुरुदेव के आशीर्वाद से यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। जहाँ 300 वर्ष से अधिक प्राचीन काले पाषाण से निर्मित श्री पाश्व॑नाथ भगवान (अहिक्षैत्र के श्री पाश्व॑नाथ भगवान जैसी छवि साधर्मी बंधुओं को दर्शन लाभ लेते समय महसूस करते है) के दर्शन और पूजा का सौभाग्य पाने हेतु प्रतिदिन विभिन्न स्थानों से श्रद्धालु यहाँ पहुँचते रहते हैं और पुण्य संचय करते हैं।
प्रतिदिन की धार्मिक क्रियाओं में मंदिर में नित्य नियम की पूजा-विधान की सुव्यवस्थित व्यवस्था रहती है। जिसमे
प्रातः 7:15 बजे – अभिषेक
प्रातः 7:30 बजे – शान्तिधारा एवं तत्पश्चात नित्य पूजा होती है और
सायंकाल 7:15 बजे – आरती, शास्त्र सभा होती रहती है।
ये समस्त क्रियाएं स्थानीय व बाहर से आये साधर्मी बंधु ही सम्पन्न करते हैं। विशेष अवसरों पर होने वाले कार्यक्रमो में विशेष कार्यक्रमों में तो यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है और वातावरण मंगलमय हो उठता है।
मन्दिर जी प्रबन्ध समिति की भावना सदैव ये ही रही है कि यहाँ पर अभिषेक, शांति धारा नियमित धार्मिक माहौल में निर्वाध रूप से चलती रहे. यहाँ श्रद्धालु स्वयं और अपने प्रियजनों के जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ, अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि आदि अवसरों पर विशेष पूजा-अभिषेक, शान्ति धारा करवाकर पुण्य संचय करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.
मन्दिर का इतिहास और स्थापना की प्रेरणा
लगभग 5 दशक पूर्व 1971 में सांगानेर के चतुर्थ कालीन संघी जी आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, के गर्भगृह में भूगर्भ चैत्यालय से आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज ससंघ के सानिध्य में श्री जी को आम जनो के दर्शनार्थ मंदिर जी में बाहर लाने का सौभाग्य परिवार के वरिष्ठ श्री कुन्दन मल गोदिका को मिला था उस समय अचानक ही कुछ भावना बनी और तभी से समस्त गोदिका परिवार ने मन्दिर जी बनाने का संकल्प लिया जो उनके पुत्र पवन कुमार ने उनके ही दिए गए धार्मिक संस्कारो के बलबूते मंदिर निर्माण कराने का विचार किया।
स्व. कुंदनमल गोदिका के आशीर्वाद और पुत्र पवन गोदिका के दृढ़ निश्चय और स्थानीय समाज की एकजुटता का परिणाम है कि आज यह मंदिर जैन समाज के लिए एक आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
आज यह मन्दिर जो एशिया महाद्वीप की जयपुर स्थित सबसे बड़ी कॉलोनी मानसरोवर के निकट स्थित है, न केवल जयपुर, बल्कि पूरे राजस्थान और अन्य स्थानों जैसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली, इलाहाबाद, उदयपुर, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है जो सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
समाज को एक सूत्र में जोड़ने का माध्यम बने है पवन कुमार -सरोज, प्रतीक- रुचि, आध्या, मानवी व समस्त गोदिका परिवार।
आध्यात्मिक अनुभव जो दर्शनार्थि बता कर जाते है
श्री पार्श्वनाथ प्रभु के अभिषेक, शांति धारा और पूजन करने से उनका हृदय शांति, सौभाग्य और संतोष से भर जाता है। मंदिर का शांत वातावरण मन को एकाग्र करता है और परम सुख की अनुभूति कराता है।*
मंदिर की भव्यता और उपलब्ध सुविधाएँ :-
1. 3166.66 वर्गगज का सम्पूर्ण सुविधा युक्त विशाल क्षेत्र,
2. विशाल मंदिर प्रांगण
3. बड़े कार्यक्रमों हेतु कवर्ड पंडाल (जहाँ लगभग 500 व्यक्ति वात्सल्य भोज का आनंद ले सकते हैं)
4. भोजन बनाने हेतु सुव्यवस्थित स्थान
5. पर्याप्त पार्किंग स्थल
6. प्रदूषण रहित शांत वातावरण. सरकार के कदमो से शीघ्र ही पास में एक बड़ा पार्क व पक्षी विहार (बर्ड सेंचुरी) भी बनने जा रही है.
7. यहाँ समय-समय पर पूजा-विधान गोष्ठियाँ, जन्मदिन समारोह, विवाह आदि सामाजिक आयोजन भी होते रहते हैं। मंदिर आने वाले हर साधर्मी को यहाँ की शांति, सुंदरता और व्यवस्थाएँ आकर्षित करती हैं।
प्रबंध समिति के मंत्री प्रमोद बाकलीवाल और उपाध्यक्ष धर्मेंद्र गोदिका ने बताया कि मन्दिर जी की व्यवस्था हेतु कुंदनमल कमला देवी चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की की गई है औऱ ट्रस्ट की सदैव से ही यह विशेषता रही है कि यहाँ साधर्मी बंधुओं की भावनाओं को सर्वोपरि रखा जाता है। आने वाला श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करें या नि:शुल्क सेवाओं का लाभ लें, मंदिर में सबको समान सम्मान मिलता है और यही कारण है कि यहां आने वाले अपने आपको सामान्य दर्शनार्थी नहीं बल्कि तीर्थयात्री समझता है।
कोषाध्यक्ष विरेंद्र के. सेठी एवं प्रतीक गोदिका कहते है कि जैसे-जैसे समाज के लोग यहाँ दर्शन-पूजन के लिए आ रहे हैं, वैसे-वैसे यह मंदिर “गुलाबी नगरी का एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक स्थल” बनता जा रहा है।मुहाना मंडी के तीन नम्बर गेट से प्रवेश करने पर पहले सर्किल के दाये तरफ 500 मीटर की दूरी पर पारस विहार जैन मंदिर स्थित है।