धन्य धरा मेवाड़…….

95 views
0
Google search engine

कांकरवा (मेवाड़) में जन्में थे, योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ महाराज

(जन्मदिन वैशाखी पूर्णिमा (इस वर्ष 12 मई 2025 ) पर विशेष )

(दिव्यराष्ट्र के लिए डॉ. विजयविप्लवी )

गोरखपुर के गोरखनाथमन्दिर को दशकों से देश में हिन्दुत्‍व की राजनीति का केन्द्र माना जाता रहा है। चर्चित व प्रसिद्ध गोरक्षनाथ पीठ पर मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भाई के वंश में जन्मे एक योगी भी महन्त पद को सुशोभित कर चुके हैं। गोरखनाथ सम्प्रदाय के महन्त दिग्विजयनाथ महाराज ने ही इस मन्दिर को हिन्दुत्व की राजनीति का केन्द्र बनाया था।
असाधारण प्रचण्ड व्यक्तित्व, ओज, तेजस्विता का सजीव श्रीविग्रह, गौर वर्ण, मोहक आकर्षक व्यक्तित्व, दक्षता और सत्यावृत्त निष्ठा के प्रतीक, लम्बा और विशाल शरीर, सुडौल तथा सुगठित अंग-प्रत्यंग वाले, योगाचार्य, धर्माचार्य, शिक्षाचार्य-आचार्यत्रय की महिमा से सम्पन्न सिद्ध योगपीठ के महन्त व अप्रितम लोकनायक बाबा दिग्विजयनाथ का जन्म वर्ष 1894 की वैशाख पूर्णिमा को मेवाड़ में उदयपुर जिले के कांकरवां के राणावत परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम राणा नान्हू सिंह था। मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के 24 भाइयों में तीसरे भाई वीरमदेव के वंशज को काकरवाँ की जागीर मिली थी। उसी ठिकाने में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह से बाईसवीं पीढ़ी में ठाकुर उदयसिंह राणावत के कुल में चार पुत्रों में तीसरे पुत्र के रूप में महन्त दिग्विजयनाथ जी का जन्म हुआ था।
उदयपुर के सन्निकट फूलनाथ नामक नाथपंथ के एक योगी रहते थे। वे गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महन्त बलभद्रनाथ जी के शिष्य थे। ठा. उदयसिंह ने उनसे निवेदन किया- ‘‘एक संतान मैंने गोरखनाथ के गोरखनाथ मंदिर में चढाने की मनौती की थी। अतः मैं अपनी एक संतान आपको भेंट करता हूँ। फूलनाथ नान्हूसिंह पांच वर्ष की उम्र में 1899 में गोरखपुर लेकर आये, योगिराज बाबा गम्भीरनाथ जी की देख-रेख में इनका पालन-पोषण हुआ तथा शिक्षा-दीक्षा की संतोषजनक व्यवस्था की गई। वे छात्र जीवन में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय हो गये। 1920 में उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के आव्हान पर विद्यालय छोड दिया था। 1922 में चोरीचौरा कांड में उनका नाम भी आया, लेकिन उनकी बुद्धिमता के सामने ब्रिटिश हुकुमत को झुकना पडा और उन्हें रिहा कर दिया गया।
15 अगस्त 1933 को गोरखनाथ मंदिर में उनकी योग दीक्षा हुई।
दिग्विजयनाथ के प्रारम्भिक जीवन काल में गोरखनाथ मन्दिर के महन्त सुन्दरनाथ थे। सुन्दरनाथ के गुरुभाई योगी ब्रह्मनाथ दिग्विजयनाथ पर अपार स्नेह रखते थे।
महन्त सुन्दरनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद 1989 में ब्रह्मनाथ महन्त पद पर अधिष्ठित हुये। उन्होंने विधिवत यौगिक शिक्षा प्रदान कर दिग्विजयनाथ को अपना शिष्य बनाया। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद 15 अगस्त 1935 बाबा दिग्विजयनाथ महन्त पद पर अधिष्ठित हुये और जीवनपर्यन्त महन्त पद का दायित्व संभालते रहे। प्राचीन गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर का पुनर्निर्माण कर उसका भव्य कायाकल्प करने का श्रेय भी उन्ही का है।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन में गौरक्षपीठ गोरखपुर की भूमिका सर्वविदित है। महंत दिग्विजयनाथ इस आंदोलन की नींव डालने वालों में प्रमुख है। 1934 से 1949 तक उन्होने रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया। 22-23 दिसम्बर 1949 को अयोध्या में भगवान रामलला की मूर्ति प्रकट होने के नौ दिन पहले महंत दिग्विजयनाथ महाराज के नेतृत्व में अखंड रामायण पाठ प्रारंभ हो गया था। उनके बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ राममंदिर आंदोलन को निर्णायक दौर में ले गये। यह भी सुखद संयोग है कि राम मंदिर निर्माण के समय इस पीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री है।
दिग्विजयनाथ भारतीय शिक्षा जगत के महनीय आचार्य थे। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उनकी अग्रणी भूमिका सर्वविदित है। उन्होंने अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ नाथ योगी महासभा का सन 1939 ई. में गठन कर उसका आजीवन अध्यक्ष पद भी सुशोभित किया था तथा योगियों के जीवन में अद्भुत संक्रांति विकसित की। वे सच्चे अर्थ में हिन्दू थे, हिन्दुओं के प्रति उनके हृदय में अगाध निष्ठा और श्रद्धा थी।
दिग्विजयनाथ, नाथ सम्प्रदाय के महन्त बने, तो मन्दिर हिन्दुत्व की राजनीति का केन्द्र बन गया। महन्त बनने के तीन वर्ष पश्चात् ही 1937 में वे हिन्दू महासभा के प्रमुख चुन लिए गए थे। 1944 में योगीश्वर गोरखनाथ की तपोभूमि, गोरखपुर में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अधिवेशन का ऐतिहासिक आयोजन किया था। महासभा के अन्‍य सदस्‍यों की ही भांति वे भी महात्‍मा गांधी के आलोचकों में से एक थे। 1948 में उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन पर मिथ्या आरोप था कि उन्होंने ही नाथूराम गोडसे को हथियार दिए थे। 1949 में सरकार ने उन्हें ससम्मान रिहा किया। 1967 में गोरखपुर से सांसद् निर्वाचित हुए। कुछ दिनों की अस्वस्थता के बाद 28 सितंबर 1969 को वे चिर समाधि में लीन हो गये।
महन्त दिग्विजयनाथ महाराज का जन्म वीरमदेव के वंश में हुआ. वीरमदेव महाराज शक्तिसिंह के सगे छोटे भाई थे. महाराणा के रनिवास की सुरक्षा व्यवस्था का दायित्व वीरमदेव जी के पास था.
महाराज शक्तिसिंह ने हल्दीघाटी युद्ध के समय हिन्दुआ सूर्य महाराणा प्रताप के प्राण बचाये थे तो उनके छोटे भाई वीरमदेव के वंश में जन्मे दिग्विजयनाथ महाराज ने विभाजन के समय हिन्दू और हिन्दुत्व की रक्षा की.
आदर्श कर्मयोगी, राष्ट्रवादिता के प्राण, आचार्य शंकर, समर्थ स्वामी रामदास, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद तथा स्वामी रामतीर्थ की परम्परा के ही प्राणवान अंग थे पूज्य दिग्विजयनाथ महाराज का नाम कालजयी कृतित्व भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here