वर्ल्ड लंग कैंसर डे विशेष
बायोमार्कर के सहायता से रोगियों को मिल रहा पर्सनलाइज़्ड उपचार
जयपुर। दिव्यराष्ट्र/ बायोमार्कर आधारित उपचार से फेफड़ों के कैंसर रोगियों की सर्वाइवल रेट में काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पहले जहां स्टेज-4 के मरीजों का सर्वाइवल टाइम बहुत कम था, वहीं अब टार्गेटेड दवाओं के जरिए कई मरीज 3 से 5 साल या उससे अधिक समय तक भी जीवित रह पा रहे हैं। बायोमार्कर आधारित उपचार ना केवल मरीज की सर्वाइवल बढ़ाता है बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाता है। यह जानकारी भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ दीपक गुप्ता ने दी। डॉ दीपक ने बताया कि जैसे हर कैंसर का इलाज अगल होता है वैसे ही बायोमार्कर के जरिए एक ही कैंसर के हर मरीज का उपचार भी रोगी की बीमारी और शारीरिक स्थिति के अनुसार अलग होता है। जिसे व्यक्तिगत (पर्सनलाइज़्ड) उपचार कहा जाता है। लंग कैंसर में इसमें बेहतरीन परिणाम सामने आए है।
डॉ दीपक गुप्ता ने बताया कि बायोमार्कर ऐसे जैविक संकेतक (जैसे जीन म्यूटेशन, प्रोटीन या अन्य अणु) होते हैं, जो किसी व्यक्ति के शरीर में कैंसर के व्यवहार को समझने में मदद करते हैं। खासकर फेफड़ों के कैंसर में, विशेषकर नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर ( एनएससीएलसी), डॉक्टर मरीज के ट्यूमर का जेनेटिक प्रोफाइल जांचते हैं और यह पता लगाते हैं कि उसमें कौन-कौन से म्यूटेशन या परिवर्तन मौजूद हैं। इन विशेष बायोमार्कर की मौजूदगी से यह तय किया जा सकता है कि कौनसी टार्गेटेड थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी उस मरीज के लिए सबसे प्रभावी होगी।
सिर्फ कैंसर सेल्स बनते है निशाना
बायोमार्कर के सहायता से रोगियों को अब टार्गेटेड दवाओं के जरिए उपचार किया जा रहा है। इन दवाओं का एक बड़ा फायदा यह भी है कि ये सिर्फ कैंसर सेल्स को निशाना बनाती हैं, जिससे साइड इफेक्ट्स भी पारंपरिक कीमोथेरेपी की तुलना में कम होते हैं। इसका सीधा लाभ मरीज की जीवन गुणवत्ता पर पड़ता है। इसमें कम थकावट, कम बाल झड़ने और बेहतर दिनचर्या के साथ जीवन जी सकते हैं।
कैंसर उपचार में एआई की भूमिका भी अहम
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग की वजह से कैंसर स्क्रीनिंग, कैंसर ट्रीटमेंट, साइड इफेक्टस मोनटीरिंग, ड्रग डिलेवरी आउटकम सभी में सकारात्मक प्रभाव पडा है। एआई विभिन्न स्रोतों जैसे इमेजिंग, जीनोमिक्स और क्लीनिकल जानकारी को मिलाकर यह अनुमान लगाने में सक्षम होता है कि कौन-सा उपचार सबसे बेहतर परिणाम देगा, जिससे व्यक्तिगत उपचार संभव हो पाता है। जैसे-जैसे एआई का क्लिनिकल प्रैक्टिस में इंटीग्रेशन होता रहेगा वैसे-वैसे लंग कैंसर के डायग्नोसिस से लेकर ट्रीटमेंट के आउटकम और क्वालिटी ऑफ लाइफ में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।
रेडिएशन थेरेपी में नवीनतम प्रगति
रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ टी पी सोनी ने बताया कि आजकल रेडिएशन तकनीक अधिक सटीक और ट्यूमर केंद्रित हो गई है जिसमें आईएमआरटी , एसबीआरटी, आई जीआरटी , एसआरटी तकनीक शामिल है। यह स्वस्थ टिश्यूज को बचाते हुए कम सिटिंग्स में कैंसर सेल को खत्म करने के साथ ही हर सिटींग में ट्यूमर की स्थिति की सटीक निगरानी की जाती है, जिससे सटीकता और सुरक्षा दोनों में बढ़ोतरी होती है।
मिनिमली इनवेसिव तकनीक पर फोकस
सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ शशिकांत सैनी ने बताया फेफड़ों के कैंसर मे ट्यूमर की स्थिति के आधार पर सर्जरी का निर्णय लिया जाता है। अब सर्जरी के साथ ही मिनिमली इनवेसिव तकनीक पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। जिसमें छोटे चीरे के माध्यम से सर्जरी की जाती है। इससे रिकवरी तेज होती है और अस्पताल में रहने की अवधि कम हो जाती है।