अजातशत्रु भैरोंसिंह शेखावत

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पुण्यतिथि 15 मई पर विशेष

(दिव्यराष्ट्र के लिए डॉ. विजय विप्लवी)

राजस्थान में सीकर जिले के खाचरियावास गांव के सामान्य कृषक परिवार में जन्म लेकर उपराष्ट्रपति तक तक सफर तय करने वाले जननेता भैरोंसिंह शेखावत को भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहा जाना मेरे विचार में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे स्वयं भी कहते थे ” मे रा दोस्त बनाने में विश्वास है, दुश्मन बनाने में नहीं, राजनीति में मेरे विरोधी हो सकते है, लेकिन शत्रु नहीं।” यह सत्य है कि उन्होंने बिना किसी भेदभाव व वैमनस्य के सहज विवेक और संतुलन से राजनीति में कार्य किया। यदि किसी व्यक्ति ने स्वार्थवश शत्रुता का भाव रखा तो भी उसे उदारमना होकर अनदेखा कर दिया।
23 अक्टूबर 1923 को खाचरियावास (सीकर) में पिता देवीसिंह शेखावत के घर में मां बन्नेकंवर की कुक्षी से बालक का जन्म हुआ, नामकरण किया गया- भैरोंसिंह शेखावत। अल्पायु में पिताजी का साया सिर से उठ गया। भैरोंसिंह जी किशोरावस्था में कृषि कार्य जुट गये। विकट पारिवारिक परिस्थितियों में अध्ययन कर राजस्थान पुलिस सेवामें चल गये, वो कार्य उन्हें रास नहीं आया।
वे जनसंघ के वरिष्ठ नेता सुंदर सिंह जी भंडारी व संघ के वरिष्ठ प्रचारक लक्ष्मणसिंह जी शेखावत के सम्पर्क में आने पर भारतीय जनसंघ में सक्रीय हो गये।
विधायक व सांसद् निर्वाचन :-
राजस्थान विधानसभा के पहले चुनाव में 1952 में वे दातारामगढ़ से विधायक चुने गये। उसके बाद वे नौ बार और विधायक चुने गये। वे 1973 में विधानसभा का चुनाव हार गये तो 1974 से 1977 तक राज्यसभा सांसद् रहे। राजस्थान में तीन बार मुख्यमंत्री व सर्वाधिक नेता प्रतिपक्ष रहने का रिकॉर्ड आपके नाम दर्ज है। शेखावत राजस्थान के एकमात्र एक नेता है, जो प्रायः हर बार अलग जिलों से निर्वाचित होकर आये। 1952 में पहले विधानसभा विधानसभा चुनाव का नामांकन भरने निकले, तब उनकी पास पैसे नहीं थे। वे अपनी पत्नी से दस रुपये लेकर पहला चुनाव लड़ने चले थी, उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन मौके पर शेखावत की धर्मपत्नी श्रीमती सूरजकुंवर उनसे परिहास में वो दस रुपये स्मरण कराना नहीं भूलती थी।
पार्टी व सिद्धांत में अटूट निष्ठा :-
1954 में विधानसभा में भूमि उन्मूलन कानून आया। जनसंघ ने कांग्रेस सरकार के इस विधेयक का समर्थन करने का निर्णय लिया। तब विधानसभा में जनसंघ के आठ विधायक थे और सभी क्षत्रिय समाज थे। इनमें से छः विधायकों ने जनसंघ का निर्णय मानने से इंकार कर दिया। केवल भैरोंसिंह शेखावत व जगतसिंह झाला (बड़ीसादड़ी) जनसंघ में रहे, शेष छः को पार्टी से निष्कासित किया गया। इसी पर 4 सितम्बर 1987 को दिवराला (सीकर) में सती रुपकुंवर प्रकरण हुआ। पूरे प्रदेश में हंगामा हुआ, आंदोलन हुए। प्रकरण पर विधानसभा में चर्चा के दौरान शेखावत का भाषण उल्लेखनीय है। उक्त दोनों प्रकरणों में शेखावत को अपने समाजजनों का कोपभाजन होना पड़ा, लेकिन वे अपने सिद्धांत पर डटे रहे।
जनसंघ के समय की कठिन यात्रा :-
शेखावत जनसंघ के विधायक, प्रदेशाध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष पदों पर रहे। लेकिन वो कालखंड अभाव व संघर्ष का था। उनके संघर्षकाल का साक्षी व साथी आज भी राजनीति में मौजूद है। एकबार बांसवाड़ा से उदयपुर आते हुए जयसमन्द के निकट बस खराब हो गयी, उदयपुर लौटने का कोई साधन नहीं मिला तो उन्होने अपने साथी नेता भानुकुमार शास्त्री के साथ जयसमंद की पाल पर रात बिताई।
खुद की सभा का खुद किया प्रचार :-
जनसंघ के समय शेखावत को सभा करने चौमू भेजा गया। चौमूं में जिन्हें सभा की व्यवस्था करनी थी, वे कहीं बाहर गये हुए थे। शेखावत ने तय किया चौमूं आ गया हूं, सभा तो करनी ही है। तांगा व माईक किराये लेकर दिनभर उद्घोषणा की। शाम को जनसंघ के नेता भैरोंसिंह शेखावत सभा को सम्बोधित करेगे। शाम को दरी बिछाकर, माईक लगाकर सुबह से साथ रहे तांगे वाले से कहा-” थोडी देर तुम रखवाली करना, मैं कपड़े बदलकर आता हूं। फिर आकर उन्होंने सभा को सम्बोधित किया।
मुख्यमंत्री बने :-
आपातकाल में शेखावत को 19 माह जेल में रखा गया। आपातकाल के बाद जनता पार्टी का गठन हुआ। 1977 में वे राजस्थान के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे और इसी बीच प्रदेश में भाजपा विपक्ष में रही तो नेता प्रतिपक्ष रहे। वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।
मुख्यमंत्री के रुपमें उनकी अंत्योदय योजना व काम के बदले अनाज योजना देशभर में मॉडल के रुप में स्वीकार की गयी। वे राजस्थान के एकछत्र व सर्वाधिक लोकप्रिय नेता रहे। लोग उनको सम्मान से बाबोसा का सम्बोधन देते थे। उनके समर्थक “राजस्थान का एक सिंह-भैरोंसिंह” का नारा देते गुंजायमान करते थे।
उदारमना राजनेता :-
शेखावत की छवि सदैव उदारमना राजनेता की रही, उनके मन में द्वेषभाव का कोई स्थान नहीं था, इसी विशेषता से वे राजनीति अजातशत्रु है। राजस्थान में अपनी पार्टी के कुछ नेताओं से उनके मतभेदों जगजाहिर थे, लेकिन शेखावत ने कभी ‘मतभेद’ से ‘मनभेद’ नहीं होने दिया। जिन नेताओं से मतभेद के की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनती थी, उनके टिकट या विभाग में शेखावत ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया।
एकबार वे मेरे पैतृक गांव निम्बाहेड़ा से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस प्रत्याशी के पति राजकीय सेवा में चिकित्सक थे। भाजपा कार्यकर्ताओं ने शिकायत की डॉक्टर साहब सरकारी नौकरी में होकर कांग्रेस का प्रचार कर रहे है। शेखावत ने ‘उनकी पत्नी चुनाव लड़ रही है, क्या वो अपनी पत्नी की मदद भी न करे?” कहकर कार्यकर्ताओं की शिकायत को अनसुना कर दिया।
एक बार शेखावत विदेश में चिकित्सा कराने गये तो पीछे से प्रदेश सरकार का तख्ता पलट करने का षडयंत्र हुआ। शेखावत अस्वस्थता में ही जयपुर लौटे और डेमेज कंट्रोल किया। चौखी ढाणी में विधायकों का कैम्प हुआ, आखिरकार सरकार बच गयी। कुछ दिनों बाद इस तख्तापलट अभियान में अग्रणी रहे शेखावाटी क्षेत्र के वरिष्ठ विधायक को पारिवारिक शोक प्रसंग हो गया, शेखावत तुरंत पहूचे। वरिष्ठ विधायक को अहसास हो गया, उन्होने कुछ दिन बाद जयपुर मुख्यमंत्री आवास आकर पूरे घटनाक्रम पर खेद जताया।
पुरस्कार व सम्मान :-
शेखावत ने जीवन में बहुत उपलब्धियां व सम्मान प्राप्त किया। मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय उदयपुर, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ व आंध्रा विश्वविद्यालय ने उन्हें डिलीट की मानद उपाधि प्रदान की। इसके अलावा येरेवन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी अर्मेनिया से उन्हें स्वर्ण पदक व डिग्री प्रदान कर सम्मानित किया गया।
19 अगस्त 2002 को वे भारत गणतंत्र के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। तब उनके सम्मान में राजयसभा में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने कहा था- “आप धूल से उठकर माथे का चंदन बन गये है।’ तत्कालीन विपक्ष के नेता डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि ” पचास वर्षों से अधिक का आपका सार्वजनिक जीवन बुद्धिमत्ता, ज्ञान और अनुभव का प्रतीक है, जिस पर हमें गर्व है।”
राजस्थान के गांव से उपराष्ट्रपति भवन तक की गौरव पूर्ण यात्रा करने वाले भैरोसिंह शेखावत ने 15 मई 2010 को अऔतिम श्वास ली। बाबोसा का व्यक्तित्व व कृतित्व जनमानस के लिये एक स्मृति व प्रेरणा का पाथेय हो गया। मूल्याधारित व शुचितापूर्ण राजनीति के लिये शेखावत को सदैव स्मृत रखा जायेगा।

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