एनआईसीयू में 80 दिनों तक चले इलाज के बाद बच्चा स्वस्थ होकर पहुंचा घर
जयपुर, दिव्यराष्ट्र/ यह कहानी है साहस, बेहतर चिकित्सा और उम्मीद के एक नई किरण की। सिर्फ 26 सप्ताह और 3 दिन में जन्मा एक प्रीमेच्योर बच्चा, जिसने जन्म के साथ ही कई गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना किया, जिसमें दिल की जन्मजात बीमारी भी शामिल थी। अब 80 दिन की गहन देखभाल के बाद स्वस्थ होकर कोकून हॉस्पिटल, जयपुर से घर लौट चुका है और नया जीवन जी रहा है।
जन्म के समय केवल 860 ग्राम वजन वाले इस नवजात को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जीवन की नाजुक शुरुआत में उसे पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस नामक एक स्थिति ने और जटिल बना दिया, जो समय से पहले जन्मे शिशुओं में अक्सर देखी जाने वाली हृदय की बीमारी है, जिसके लिए सर्जरी द्वारा उपचार की आवश्यकता होती है। कोकून में स्थिर होने के बाद, उसे जयपुर के दूसरे अस्पताल में एक विशेष कार्डियोथोरेसिक केंद्र में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ हृदय संबंधी प्रक्रिया सफलतापूर्वक की गई। बाद में उसे निरंतर देखभाल और रिकवरी के लिए कोकून हॉस्पिटल वापस लाया गया।
डॉ. मनीष मित्तल और डॉ जीतेन्द्र जैन, सीनियर नियोनेटोलॉजिस्ट – डिपार्टमेंट ऑफ़ नियोनेटोलॉजी, कोकून हॉस्पिटल ने कहा कि, “इस बच्चे की यात्रा वाकई असाधारण रही। इतने कम वजन के साथ जन्म लेने वाले प्रीमैच्योर बच्चों के लिए, वो भी हृदय रोग के साथ, जीवित रहना बहुत कठिन होता है। इसे उन्नत श्वसन सहायता, सावधानीपूर्वक पोषण संबंधी योजना, सतर्क संक्रमण नियंत्रण और विशिष्टताओं के देखभाल की जरूरत थी। आज जब यह बच्चा 2 किलो से ज्यादा वजन के साथ स्वस्थ होकर घर जा रहा है, तो यह हम सबके लिए गर्व का पल है।”
बच्चे ने जन्म के बाद पहला महीना वेंटिलेटर पर बिताया, कई बार खून चढ़ाया गया और गंभीर संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज किया गया | यह सब संभव हुआ कोकून हॉस्पिटल की कुशल नियोनेटोलॉजी टीम, अनुभवी एनआईसीयू नर्सों, बाल हृदय विशेषज्ञों और इंटर-हॉस्पिटल ट्रांसपोर्ट टीम की सतत मेहनत से।
बच्चे की मां निकीता सांगई ने भावुक होकर कहा, “हमने हर दिन डर और उम्मीद के बीच जिया। कोकून और शहर के दूसरे हॉस्पिटल की डॉक्टर और नर्स की टीम हमारे लिए परिवार बन गए। उन्होंने हमारे बेटे को नई ज़िंदगी दी है, इसके लिए हम हमेशा इनके आभारी रहेंगे।”
यह डिस्चार्ज सिर्फ एक परिवार के लिए नहीं, बल्कि उन तमाम डॉक्टरों और नर्सों के लिए भी एक ऐतिहासिक पल है, जिन्होंने लगभग तीन महीने तक दिन-रात मेहनत की। अब 2.04 किलो वजन का यह बच्चा एनआईसीयू को अलविदा कहकर एक नई शुरुआत की ओर बढ़ चला है, उम्मीद और जज़्बे का प्रतीक बनकर।
डॉ. दिलशाद खान, यूनिट हेड, कोकून हॉस्पिटल, जयपुर ने कहा, “यह केस दर्शाता है कि समय पर हस्तक्षेप, टीमवर्क और इंसानी जज्बा मिलकर क्या कर सकते हैं। इस बच्चे को हर दिन सबल होते देखना और आखिरकार स्वस्थ होकर घर लौटना एक ऐसा परिणाम है जिसकी हम सभी कामना करते हैं। यह कोकून हॉस्पिटल में हमारी पूरी टीम के लिए गर्व का क्षण है।”