
इकिगाई के फ्रांसेस्क मिरालेस से लेकर बुकर सम्मानित बानू मुश्ताक तक—वैश्विक आवाज़ों ने मेघालय के प्रमुख महोत्सव को दी नई ऊँचाइयाँ
शिलांग, दिव्यराष्ट्र*:/ गुलाबी चेरी ब्लॉसम से सजे वॉर्ड्स लेक के मनोहारी परिसर में 5वां शिलांग लिटरेरी फेस्टिवल 2025 भव्य रूप से प्रारंभ हुआ। तीन दिवसीय महोत्सव की शुरुआत ने शहर को कला, संस्कृति और साहित्यिक संवादों के रंग से सरोबार कर दिया, जहां देश-दुनिया के प्रतिष्ठित लेखक, कवि और विचारक एक मंच पर जुटे।
उद्घाटन समारोह में बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार से सम्मानित लेखिका बानू मुश्ताक, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्पेनिश लेखक फ्रांसेस्क मिरालेस, वरिष्ठ विचारक संजय हजारिका, लेखक सैम डालरिम्पल, जेरी पिंटो, प्रो. डेसमंड खर्मावफलांग, क्यूरेटर श्रीमती मालविका बनर्जी, सोनल जैन, डेनिस लाइश्रम, पेट्रीशिया मुखिम, एवं साहित्य की कई स्थानीय हस्तियाँ—जैसे स्ट्रिमलेट ढकर और वाल्डेन जॉन परियात—ने अपनी उपस्थिति से आयोजन को समृद्ध बनाया।
पर्यटन विभाग के आयुक्त एवं सचिव श्री विजय कुमार डी आईएएस ने कहा,“शिलांग साहित्य महोत्सव अब केवल एक आयोजन नहीं रहा, यह एक सांस्कृतिक आंदोलन बन गया है। पिछले वर्षों में इसने कॉलेजों, स्कूलों और संस्थानों में साहित्य और संवाद की नई रुचि जागृत की है। हमारे राज्य के युवाओं के लिए यह मंच अवसरों का नया द्वार खोलता है। हम सभी लेखकों से आग्रह करते हैं—मेघालय की कहानियाँ दुनिया तक पहुँचाएँ।”
बुकर सम्मानित लेखिका बानू मुश्ताक ने शिलांग की रचनात्मक आत्मा का उल्लेख करते हुए कहा, “शिलांग में खड़ा होना मानो किसी ऐसी पंक्ति में प्रवेश करना है जो वर्षों से मेरा इंतजार कर रही थी। यह शहर कहानियों की धरती है—जहाँ शब्द सांस लेते हैं। मैं सम्मानित हूँ कि अपनी आवाज़ यहाँ के परिदृश्य में जोड़ सकी। आने वाले दिनों में उम्मीद है कि हम नई कथाओं में प्रवेश करेंगे, एक-दूसरे को सुनेंगे, और कल्पनाओं के नए आयाम खोजेंगे।”
इकिगाई के लेखक फ्रांसेस्क मिरालेस ने भारत से अपने विशेष जुड़ाव को याद किया। उन्होंने कहा, “शिलांग में पहली बार आकर बेहद सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। भारत के साथ मेरा रिश्ता गहरा है—इसी देश ने मुझे लेखक बनने की प्रेरणा दी। अगर 1998 में मेरी भारत यात्रा न होती, तो शायद मैं कभी किताबें न लिखता।”
फेस्टिवल की क्यूरेटर मालविका बनर्जी ने वॉर्ड्स लेक में चार वर्षों बाद वापसी को ‘अलग तरह की खुशी बताते हुए कहा कि इस वर्ष खासी और ग्रो कार्यक्रमों का क्यूरेशन उनके लिए विशेष रहा। उन्होंने कहा, “शिलांग की पहचान इसकी स्थानीय भाषाएँ और आवाज़ें हैं। अगर हम यहाँ खासी- गारो सत्रों को स्थान न दें, तो हम मेघालय की आत्मा का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएँगे।”
पहले दिन की प्रमुख झलकियाँ
महोत्सव के पहले दिन तीन महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण हुआ—
• ‘वाड श्वा ला का तिनराई’ — स्ट्रिमलेट ढकर
• ‘सॉन्ग्स ऑफ अवर पीपल’ — अनुराग बनर्जी
• ‘इज़ शी वाइज़’ — मोनिका थॉमस, ग्लाडिनिया पिरटुह और एंथनी दुर्पुई
इकिगाई के जीवन-दर्शन पर फ्रांसेस्क मिरालेस और प्रो. डेसमंड खर्मावफलांग के बीच संवाद ने दर्शकों को आकर्षित किया। इसके बाद संजय हजारिका और प्रीति गिल ने डिब्रूगढ़ बोट क्लीनिक परियोजना के सफर पर चर्चा की।
“पुरी – द शेप ऑफ वॉटर” सत्र में मिथक और स्मृतियों के बीच संबंधों पर विचार हुआ। डेनिस लाइश्रम की लाइव ड्रॉइंग, वाल्डेन जॉन परियात की रीडिंग, और रोज़ी चामलिंग व होइह्नु हैजल द्वारा हिमालयी लोककथाओं पर चर्चा ने माहौल को जीवंत बनाए रखा।
बाइलिंग्वल बच्चों की किताब “इज शी वाइस” के लेखकों ने मौसुमी डे के साथ बातचीत में बियाटे लोककथाओं और स्त्री-ज्ञान के लोकवाचन को सामने रखा।
“हील द वर्ल्ड” सत्र में जेरी पिंटो और डॉ. नीना वर्मा ने संवेदना, मानसिक स्वास्थ्य और शोक-प्रबंधन पर गंभीर संवाद किया।
सैम डालरिम्पल और सायरिल वी.डी. डिंगडोह, आईएएस के बीच हुई चर्चा में “ शेटर्ड डी लैंड” में वर्णित एशिया की पाँच ऐतिहासिक विभाजनों पर प्रकाश डाला गया। इसके बाद बानू मुश्ताक और पेट्रीशिया मुखिम के बीच उनकी पुस्तक हार्ट लैंप पर केंद्रित सार्थक वार्तालाप हुआ।
शाम का अंतिम सत्र “मेकिंग खासी लिटरेचर ट्रैवल” था, जिसमें स्ट्रिमलेट ढकर, बंडारिलिन बैरो, एल्फिडारी खारसिंतi और बेसिलिका नोंगप्लुह ने अनुवाद, नए मंचों और खासी साहित्य के भविष्य पर विचार साझा किए।
दिन का समापन मेघालय ग्रासरूट्स म्यूज़िक प्रोजेक्ट के युवा कलाकारों की मनमोहक संगीतमय प्रस्तुति से हुआ, जिसने शहर की कला और संगीत परंपरा को एक बार फिर उजागर किया।


