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महिलाओं की मजबूत स्थिति ने सुनिश्चित किया स्पष्ट जनादेश

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Priyanka, Research Scholar, Delhi University
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दिव्य राष्ट्र के लिए प्रियंका (शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय) का आलेख

चुनाव के नतीजों के रुझान जहां फिर एक बार केंद्र में सरकार, भाजपा बनाने जा रही है। तीसरी बार सरकार बनाना यह कई मायनों में सरकार पर जनता के दृढ विश्वास को दिखाता है और यह विश्वास कायम हो पाया है, सरकार द्वारा लिए गये सही फैसलों और उन पर ज़मीनी तौर पर काम करने के कारण। महिलाएं जिन्हें अक्सर साइलेंट वोटर मान कर दरकिनार किया जाता रहा है इस सरकार ने शुरू से ही उन्हें अपनी प्राथमिकताओं में रखा है, 2015 में प्रधानमंत्री जी द्वारा “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा दिया गया था जहाँ शुरुआत में बेटियों को बचाने यानी लिंगानुपात के भेद को कम करने का लक्ष्य था, जिसका असर हम देख सकते हैं कि यह मिशन वक्तव्य से कहीं अधिक बढ़ा बना, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में वृद्धि है, जो 2015 में 871 से बढ़कर अब 914 हो गया है, बेटियों की पढाई पर भी सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये जिसमें शिक्षा को सुविधाजनक बनाने के लिए सुकन्या ‘समृद्धि योजना’ की शुरुआत की गयी जो पहले ही 4 करोड़ से अधिक आकांक्षी युवा महिलाओं तक पहुंच चुकी है।

2019 की जीत के बाद सरकार द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण और आर्थिक तौर पर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई ज़रूरी नीतियों की शुरुआत की जिसमें महत्वपूर्ण रही प्रधान मंत्री मुद्रा योजना ( पीएमएमवाई)। इसकी स्थापना के बाद से 24 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कुल स्वीकृत ऋणों से 43 करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं। इसमें से 30 करोड़ लाभार्थी महिलाएं हैं, खासकर समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों से सम्बन्ध रखने वाली महिलाएं।

सरकार ने महिला सशक्तिकरण को केवल लैंगिक समानता और लैंगिक न्याय तक सीमित नही किया है बल्कि इसके असली अर्थ के रूप को दिखाते हुए महिलाओं को अधिक नौकरियों और विकास के लिए उद्यमिता के समान अवसर भी दिए। जिसका उदाहरण है ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी) को प्रोत्साहित किया जाना, पिछले आठ वर्षों में एस.एच.जी के तहत काम करने वाली 85 मिलियन (8.5 करोड़) से अधिक महिलाओं को 5.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि प्रदान की गई है। एस.एच.जी ने महिलाओं के लिए कई क्षेत्रों में आगे बढ़ने के अवसर पैदा किए हैं।

(महिला-ई-हाट) एक पोर्टल जो एक प्रकार का द्विभाषी ऑनलाइन विपणन मंच है, जिसमें इच्छुक महिलाएं उद्यमियों, एसएचजी और गैर सरकारी संगठनों को अपने द्वारा निर्मित उत्पादों और सेवाओं को बेच कर लाभ पाती हैं। महिला-ई-हाट द्वारा प्रदान की जाने वाली कई सेवाओं में विक्रेताओं और खरीदारों के बीच सीधे संपर्क की सुविधा है साथ ही यह मंच 18 वर्ष से अधिक उम्र की सभी भारतीय महिलाओं के लिए उत्प्रेरक का कम करता है जिन्हें अपने सपनों की नयी उड़ान, अपने पंखों से भरनी है। सरकार ने 115 से अधिक जिलों में महिला शक्ति केंद्र भी लॉन्च किए हैं जिसके द्वारा प्राप्त कौशल विकास, रोजगार, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य और पोषण के कई अवसरों ने ग्रामीण महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया। कुछ साल पहले सरकार ने कामकाजी महिलाओं और एकल माताओं के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक आवास की उपलब्धता के साथ-साथ उनके बच्चों के लिए डे-केयर सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए युद्ध स्तर पर किफायती ‘वर्किंग वुमन हॉस्टल’ भी लॉन्च किया था इस प्रयास से ग्रामीण और शहरी दोनों जगह कामकाजी महिलाओं को सबल और हिम्मत मिली है, जो उनके आगे बढ़ने में मददगार साबित हुई।

महिला सुरक्षा एवं सम्मान के लिए इस सरकार द्वारा जितने फैसले लिए गये वह सभी साहसिक और महिलाओं में यह विश्वास जगाते हैं कि यह सरकार उनके साथ है, चाहे फिर वह सामाजिक रूप से हो या न्याय व्यवस्था के स्तर पर ही क्यों ना हो। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 में व्यापक संशोधन, बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के मुकदमें के लिए उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 302 के तहत अब 16 साल की लड़की के साथ किसी भी अन्य वयस्क की तरह व्यवहार किया जाएगा। यह सभी महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा लिया गया कदम है।

किसी भी देश को आगे बढ़ाने के लिए उस देश की आधी आबादी( महिलाओं ) की बराबर भागीदारी आवश्यक है, इस बात को इस सरकार ने बेहतर रूप से समझा भी और इस ओर काम भी किया जैसे भारत में 112,000 से अधिक स्टार्टअप हैं, जिनमें से कम से कम 45 प्रतिशत महिला उद्यमी हैं। भारत के 113 यूनिकॉर्न में से 15 प्रतिशत से अधिक की संस्थापक महिलाएं हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है।

आर्थिक पहलुओं के बाद राजनीति एक ज़रूरी पक्ष है जहाँ महिलाओं के प्रभावी नेतृत्व की ज़रूरत है जिसमें वर्तमान केन्द्रीय सरकार हमेशा से आगे रही। जुलाई 2021 में कैबिनेट विस्तार के बाद 78 मंत्रियों में से आज सरकार के कैबिनेट में 11 महिलाएं हैं। पिछले 17 वर्षों में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं की यह सबसे अधिक संख्या है। इससे पता चलता है कि केन्द्रीय सरकार की व्यापक पहुंच के कारण महिला-केंद्रित राजनीति फलीफूली और साथ ही ‘महिला आरक्षण अधिनियम 2023’ का दोनों सदनों में पास होना महिलाओं को आगे बढ़ने की दिशा को नए आयाम देता है।

भारतीय सशस्त्र बलों में आज 28 प्रतिशत महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन का दर्जा दिया गया है। सेना, वायु सेना और नौसेना में 3938 से अधिक महिला अधिकारी हैं, जिनमें से 1107 से अधिक को मार्च 2022 के अंत तक स्थायी कमीशन प्राप्त हुआ। यह दिखाता है की भारतीय सेना में महिलाओं की उपस्थिति जो कभी अकल्पनीय थी आज वह मबजूत सच बनकर साकार हुआ है।

सरकार की महिलाओं को लेकर एक दूरदृष्टि यह भी दिखाती है की इनकी महिला प्रतिनिधि समाज की सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं चाहे वह दिवंगत सुषमा स्वराज हों या भारत की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जो इस बात की प्रतीक हैं कि सरकार भारत में ‘नारी शक्ति’ को अनिवार्य रूप से आगे बढ़ाने के दृढ़ संकल्प के साथ प्रतिबद्ध है। द्रौपदी मुर्मू जी की प्रेरक यात्रा स्त्री सशक्तिकरण के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है जिसे जगह देने में और आगे लाने में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सरकार का शक्तिशाली महिला नेतृत्व वाला विकास मॉडल अपनी तरह का पहला मॉडल है और इसने महिला सशक्तिकरण के विचार को कई नए रूपों में परिभाषित किया है।

कई लोग मानते हैं कि महिलाओं को बहला फुसला कर उन्हें अपनी तरफ शामिल किया जा सकता है, उन्हें राजनीति या आर्थिक नीतियों की समझ नहीं। ऐसे लोगों की छोटी मानसिकता को जवाव इस बार के चुनावी नतीजे दे रहे हैं जहाँ महिलाओं के पक्ष वाली सरकार तीसरी बार बनने जा रही है। यह नतीजे यह साबित करते हैं की जो महिलाओ के हित में काम करेगा महिलाओं द्वारा उसे चुना जायेगा। यह इस साइलेंट वोटर की ताकत है, जिसका शोर हवाई बातों में नहीं बल्कि चुनावी नतीजों में सुनाई पड़ता है।

 

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