जयपुर, दिव्यराष्ट्र:/ माइग्रेन से पीड़ित लोग अच्छी तरह जानते हैं कि दर्द के कारण ऑफिस से छुट्टी लेना कोई नई बात नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह उत्पादकता में कमी का एक प्रमुख कारण है? खासतौर पर 20 से 50 वर्ष की उम्र के प्रोफेशनल्स—जो कामकाजी आबादी का सबसे अहम हिस्सा हैं—इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। अनियमित काम के घंटे, ज्यादा स्क्रीन टाइम, बैठने का गलत तरीका, लगातार तनाव और बर्नआउट जैसी स्थितियां इसके प्रमुख कारण हैं, जिनसे निपटना बहुत जरूरी है।
डॉ. स्वप्निल जैन, कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट, जयपुर, ने कहा, “अब इलाज का मकसद सिर्फ दर्द से बचना या फौरी राहत नहीं है, बल्कि माइग्रेन से पूरी ‘आज़ादी’ पाना है। इसका अर्थ है माइग्रेन के हमलों की आवृत्ति, अवधि और प्रभाव को कम करना, ताकि लोग अपनी ज़िंदगी दोबारा जी सकें और अपने काम पर लौट सकें। यही अंतिम लक्ष्य है—माइग्रेन से मुक्ति।”
दुनिया भर में यह माना गया है कि माइग्रेन सिर्फ सिरदर्द नहीं है। हर चार में से एक व्यक्ति माइग्रेन से पीड़ित है और भारत में भी यह आंकड़ा लगभग 25% के आसपास है। द लैंसेट (2019) के अनुसार, माइग्रेन दुनिया भर में अक्षमता (डिसएबिलिटी) का दूसरा सबसे बड़ा न्यूरोलॉजिकल कारण है।
कई लोग पूरी ज़िंदगी माइग्रेन से जूझते रहते हैं, जिसका असर उनकी निजी और पेशेवर ज़िंदगी पर गंभीर और अशक्त करने वाला हो सकता है। माइग्रेन के दौरान, दिमाग अपनी सुरक्षा परतों (मेनिंजेस) को संकेत भेजता है। इसके जवाब में, सीजीआरपी (कैल्सीटोनिन जीन-रिलेटेड पेप्टाइड) जैसे रसायन निकलते हैं। सीजीआरपी विशिष्ट रिसेप्टर्स से जुड़ता है, जिससे मेनिंजेस की रक्त वाहिकाओं में फैलाव और सूजन आ जाती है।
नसों का यह फैलाव और गैर-संक्रामक सूजन ही माइग्रेन के विशिष्ट दर्द का कारण बनते हैं। यह दर्द का संकेत वापस दिमाग तक पहुंचता है, जहां इसे प्रोसेस किया जाता है। इसी वजह से मरीज को मतली, रोशनी से परेशानी (फोटोफोबिया) और तेज़ आवाज़ से दिक्कत (फोनोफोबिया) जैसे लक्षण महसूस होते हैं। असल में, माइग्रेन के समय दिमाग की झिल्लियों में होने वाली सूजन मेनिन्जाइटिस जैसी प्रक्रिया की नकल करती है, हालांकि इस मामले में यह किसी संक्रमण की वजह से नहीं होता।






