
जयपुर, 10 नवंबर 2025: भारत में कुल कैंसर मामलों में लगभग एक-तिहाई मामले हेड एवं नेक के कैंसर के होते हैं। यह देश के सबसे आम, लेकिन काफी हद तक रोके जा सकने वाले कैंसरों में से एक है। राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस के अवसर पर फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल, जयपुर के डॉक्टरों ने लोगों से अपील की है कि वे शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ न करें, तंबाकू-शराब के सेवन से बचें और समय पर डॉक्टर से जांच करवाएँ। इससे कैंसर का जल्दी पता लग सकता है और इलाज के परिणाम बेहतर होते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मुँह, गले, स्वरयंत्र और साइनस से जुड़े अधिकांश हेड एवं नेक के कैंसर गलत जीवनशैली की आदतों के कारण होते हैं। कई लोग दर्द न होने या हल्के लक्षणों को सामान्य समझकर देर से अस्पताल आते हैं, जिससे बीमारी बढ़ जाती है और उपचार कठिन हो जाता है।
इन शुरुआती लक्षणों को बिल्कुल नज़रअंदाज़ न करें:
मुँह के छाले, सफेद या लाल धब्बे
लगातार गले में खराश या आवाज़ बैठना
गर्दन या जबड़े में गांठ या सूजन
निगलने में कठिनाई
बिना वजह वजन कम होना या मुँह से खून आना
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स जयपुर में ऑन्कोलॉजी कंसल्टेंट, डॉ. दिवेश गोयल ने कहा, “जागरूकता ही सबसे बड़ा बचाव है। अधिकतर सिर और गर्दन के कैंसर बेहद छोटे और आसानी से ठीक होने वाले लक्षणों से शुरू होते हैं, जिन्हें अक्सर लोग गंभीरता से नहीं लेते। दो हफ्ते से ज़्यादा कोई भी लक्षण बने रहे, खासकर तंबाकू या शराब सेवन करने वालों में, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ।”
डॉ. जितेंद्र कुमार शर्मा, कंसल्टेंट, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी (हेड एवं नेक) , फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, जयपुर ने कहा, “तंबाकू के खतरों और नियमित जांच के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना कई लोगों की जान बचा सकता है। शुरुआती पहचान से न केवल जीवन बचाया जा सकता है, बल्कि बोलने, निगलने और चेहरे की गतिविधियों जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को भी संरक्षित रखा जा सकता है।”
डॉक्टर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जीवनशैली में बदलाव एक प्रमुख निवारक उपाय है। तंबाकू और शराब से परहेज, अच्छी मौखिक स्वच्छता बनाए रखना, फलों और सब्जियों से भरपूर संतुलित आहार लेना और नियमित रूप से दंत या ईएनटी जांच करवाना जोखिम को कम करने के महत्वपूर्ण कदम हैं।
फोर्टिस हॉस्पिटल्स देश भर में कम्युनिटी शिक्षा और प्रिवेंशन ऑन्कोलॉजी कार्यक्रमों को प्राथमिकता दे रहा है, जिसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, शीघ्र परामर्श को प्रोत्साहित करना और समय पर जांच को बढ़ावा देना है, खासकर उच्च जोखिम वाले समूहों में।





