(डॉ सीमा दाधीच)
मातृ भक्त ,सच्चे शिवभक्त, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर,पाण्डव कुल का दीपक जिसके शीश के दान से प्रसन्न हो भगवान श्री कृष्ण ने को अपना स्वयं का नाम देकर कलयुग का सर्व श्रेष्ठ देवता बना दिया । बर्बरीक इतने बल शाली थे कि वे किसी भी युद्ध को आसानी से जीत सकते थे। हारे का सहारा श्याम हमारा के जय घोष से करोड़ों भक्त उन्हें पूजनीय मानते है। एक सच्चा भक्त जो शीश के धड़ से अलग होने के बाद भी महाभारत युद्ध का 18 दिन तक साक्षी बना।
भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध गांव है, खाटू जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है । इस स्थान पर वैसे तो आए दिन ही भक्तों का सैलाब रहता है लेकिन फाल्गुन मास में यह क्षेत्र खाटू नरेश के भक्तों का महा कुंभ के रूप में नज़र आता है। इस स्थान पर श्याम बाबा के भक्त दूर दूर से दर्शन के लिए आते है। यह मंदिर 1027 ई॰ में रूपसिंह चौहान और नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया।
खाटू श्याम का लक्खी मेला हर साल फ़ाल्गुन महीने में लगता है,यह मेला फ़ाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को लगता है। इस मंदिर में पांडवपुत्र भीम के पौत्र और पिता घटोत्कच माता अहिलावती के पुत्र बर्बरीक जिसे श्याम नाम से पहचान स्वयं श्री कृष्ण ने दी । इस स्थान पर भक्त के सिर की पूजा भगवान रूप में होती है। महाभारत के महायोद्धा बर्बरीक का ही दूसरा नाम “खाटूश्याम”, “हारे के सहारे”, लखदातार, खाटूनरेश नाम से भक्तों के बीच कलयुग में पूजे जाते है।
बर्बरीक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे। बर्बरीक ने भगवान शिव की
तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें तीन अभेद्य शस्त्र दिए, जिनसे वे “तीन बाणधारी” कहलाए।
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की। जब मां ने इसकी अनुमति दे दी तो उन्होंने माता से पूछा, ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ इस पर माता ने विचार किया कि कौरवों के साथ तो विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, गुरु कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महारथी साथ हैं, इनके सामने पांडव युद्ध हार नहीं जाए , इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि ‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनना।
बर्बरीक ने माता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेंगे और वह युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का अंत जानते थे इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगा तो पांडवों का हारना निश्चित है।
भगवान श्रीकृष्ण को चिंता हुई,तब श्री कृष्ण ने अपनी कूटनीति से ब्राह्मण का वेश धारण करके बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक सोच में पड़ गया कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों मांगेगा? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। शीश दान से पहले बर्बरिक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जताई श्रीकृष्ण ने उसे स्वीकार किया तब बर्बरीक ने भगवान को प्रणाम कर अपनी तलवार निकालकर अपने शीश को काट दिया और श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर अर्पण कर दिया। श्रीकृष्ण ने उनके शीश को युद्ध स्थल पर एक ऊंचे स्थान पर स्थापित करके उन्हें अवलोकन की दृष्टि प्रदान की जिससे वो युद्ध देख सके और 18 दिन तक चले युद्ध को बर्बरीक के शीश ने देखा युद्ध समाप्त होने और पांडवों की जीत के बाद पाण्डव इस बात से गर्वित हो रहे थे कि युद्ध कौशल में हम में से सर्वश्रेष्ठ कौन रहा इसका निर्णय कौन करे तब वो बर्बरीक के शीश से पूछते है कि युद्ध में श्रेष्ठ योद्धा कौन रहा उन्होंने कहा कि युद्ध में सिर्फ़ भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही चल रहा था और माँ काली के अवतार में द्रौपदी चंडी का रूप धारण कर पापियों का लहू पी रही थी। युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की नीति के कारण जीता गया है। बर्बरीक के निष्पक्ष न्याय से प्रसन्न हो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि वह खाटू नामक ग्राम में प्रकट होने के कारण खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्ध होंगे और मेरी सभी सोलह कलाएं तुम्हारे शीश में स्थापित होंगी।
और जैसे-जैसे कलयुग आएगा, तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे नाम के उच्चारण मात्र से ही लोगों का कल्याण होगा। महाभारत के समय बर्बरीक ने युद्ध में हार रहे पक्ष का साथ देने का वचन लिया था, इसलिए उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है, बर्बरीक के इस वचन के कारण ही खाटू श्याम को ‘हारे का सहारा’ भी कहा जाता है।
श्री कृष्ण ने हमेशा नैतिकता और न्याय का पक्ष लिया और पांडवों को धर्म की राह पर चलते हुए समर्थन किया। कलयुग में आस्था और विश्वास का अनूठा मेला लखदातार मेला जो लोगों को दूर दूर से अपनी और खींचता है यह राजस्थान का बड़ा मेला है इसमें लाखों की संख्या में देश के विभिन्न भागों से भक्त आते हैं। हारे के सहारे की शरण में आकर अपना मस्तक झुकाते हैं चाहे कोई अरबपति हो चाहे गरीब सभी तरह के लोग शामिल होते होकर अपनी मनोकामना मांगते हैं और जीतेंगे इस विश्वास से दर्शन कर लौटते हैं। सरकार द्वारा भी इस मेले के आयोजन को सफल बनाने में मंदिर ट्रस्टी के साथ मिलकर व्यवस्था को देखा जाता है। यह मेला सामाजिक एकता का भी संदेश देता है जहां जाति भेद भुलाकर भक्त केवल श्याम बाबा का आशीर्वाद पाने ही आते है