(अजय त्यागी बीकानेर)
एक दीपक इंसानियत का, निज मन में रोशन कर ले।।
मन में फैले अन्धकार और, वैमनस्य को हर ले।
एक दीपक इंसानियत का, निज मन में रोशन कर ले।।
उजियारा ऐसा हो मन में, छल और कपट निकल भागें,
ना उंच नीच ना जात धर्म की मन में अभिलाषा जागें।
बस सौमनस्य ही हो जग में, इस बैर-भाव को जो हर ले,
एक दीपक इंसानियत का, निज मन में रोशन कर ले।।
ना मानवता हो शर्मसार, ना रिश्तों की पैमाइश हो,
पग ना डिगे सत्यपथ से, चाहे कितनी आजमाइश हो।
प्रेम बसे केवल मन में, जो इर्ष्या का शमन कर ले,
एक दीपक इंसानियत का, निज मन में रोशन कर ले।।
स्नेह-मैत्री से पुलकित हो मन, भाईचारा प्यारा हो,
सहयोग, समर्पण, सेवा ही बस, पुरुषार्थ का नारा हो।
हर मानव से आसक्ति हो, खुद से ही ये वचन कर ले,
एक दीपक इंसानियत का, निज मन में रोशन कर ले।