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तिलक का आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व

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(गोविन्द पारीक पूर्व अतिरिक्त निर्देशक डीआईपीआर)
हमारी सनातन संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा प्राचीन कल से सतत रूप से चली आ रही है। तिलक लगाना अत्यन्त शुभ माना जाता है।समस्त धार्मिक कार्य प्रांरभ करने से पूर्व तिलक लगाया जाता है। तिलक अनेक प्रकार से और विभिन्न सामग्री का उपयोग कर लगाए जाते हैं। मांगलिक अवसरो पर कुमकुम, केसर, चंदन, हल्दी, भस्म या माटी से तिलक लगाया जाता है।

एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार ललाट के मध्य भाग में तिलक लगाने से एकाग्रता, संयम, आत्म शक्ति में वृद्धि होती है। ललाट के मध्य अर्थात दोनों आंखों के मध्य में आज्ञा चक्र होता है। इस स्थान पर तिलक लगाने से एकाग्रता में वृद्धि होती है। अंगूठे या उंगली से इस स्थान पर दबाव पड़ने पर सिर तक जाने वाली नसों में रक्त संचार के प्रवाह में गति आती है।

मान्यता है कि तिलक के बिना स्नान, जप, दान, यज्ञ, श्राद्ध और देवताओं की पूजा इत्यादि सभी निष्फल हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक ब्राह्मण को तिलक अवश्य लगाना चाहिए। क्षत्रिय व वैश्य के लिए विभिन्न अवसरों पर अलग अलग प्रकार की सामग्री से तिलक लगाने की परम्परा है। युद्ध में जाते समय तो रक्त से तिलक लगाए जाते थे।

विभिन्न पंथ और संप्रदाय द्वारा अलग अलग प्रकार से तिलक लगाने की परम्परा है। शैव, शाक्त, वैष्णव सहित लगभग सभी प्रमुख संप्रदाय तिलक लगाते हैं। शैव संप्रदाय से संबद्ध व्यक्ति ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाते हैं। शाक्त संप्रदाय के लोग सिंदूर से तिलक लगाते हैं। उग्रता के प्रतीक इस प्रकार के तिलक को साधक की शक्ति व तेज में वृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।

वैष्णव संप्रदाय में प्रमुख श्री तिलक सहित कुल 64 प्रकार से तिलक लगाये जाते हैं। श्री तिलक में चंदन के तिलक के बीच कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनाई जाती है। श्री कृष्ण के उपासक श्याम श्री तिलक धारण करते हैं। इसमें चंदन के बीच काले रंग की मोटी रेखा होती है।विष्णु स्वामी तिलक दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है और यह दोनों भौहों के बीच तक लगाया जाता है। रामानंद तिलक धारण करते समय विष्णु स्वामी तिलक के बीच में कुमकुम की खड़ी रेखा खींची जाती है। साधु-संतों व सन्यासियों द्वारा गणपत्य, तांत्रिक, कापालिक इत्यादि अनेक प्रकार के तिलक धारण किये जाते हैं।

तिलक मुख्य रुप से कुमकुम, केसर, चंदन और भस्म इत्यादि से लगाए जाते हैं। कुमकुम के साथ हल्दी, चूना इत्यादि मिलाकर लगाए तिलक से आज्ञा चक्र की शुद्धि होती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है। रोली और कुमकुम का तिलक लगाने से आकर्षण बढ़ता है वआलस्य दूर होता है।केसर का तिलक लगाने से मस्तिष्क को शीतलता प्राप्त होती है व सौंदर्य में वृद्धि होती है। साथ ही यश बढ़ता है व काम पूर्ण होते हैं। चंदन का तिलक दिमाग को शीतलता प्रदान करता है और मानसिक शांति बनी रहती है। भस्म का तिलक लगाने से मस्तिष्क विषाणुओं से मुक्त रहता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह निरंतर बना रहता है। गोरोचन का तिलक लगाने से विजय की प्राप्ति होती है। अष्टगंध का तिलक लगाने से विद्या बुद्धि की प्राप्ति होती है।

तिलक लगाने के लिए उपयोग की गई उंगलियों का भी महत्व है। शास्त्रों में तिलक लगाने के कुछ नियमों का भी वर्णन है। प्रत्येक उंगली से तिलक लगाने का अलग अलग महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है और जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। देवताओं को मध्यमा उंगली से तिलक लगाना चाहिए।

सुख-शांति प्राप्ति के लिए अनामिका उंगली का प्रयोग करना चाहिए।धनवान बनने की इच्छा रखने वाले लोग मध्यमा उंगली से तिलक लगाएं। शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए तर्जनी उंगली से ललाट पर तिलक लगाना चाहिए। मोक्ष की इच्छा रखते वालों को अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पूजा करते समय मस्तक पर तिलक लगाना पवित्र और लाभकारी होता है। साधु-संत पूजा के दौरान मस्तक के साथ-साथ अपनी भुजाओं, छाती और गले पर भी चंदन या तिलक लगाते हैं। गले पर तिलक लगाना बहुत शुभ माना जाता है। गले पर तिलक लगाने से कंठ शांत रहता है, वाणी में मिठास रहती है व सांस की गति शांत होती है।धार्मिक मान्यता है कि गले का संबंध मंगल ग्रह से है। मंगल ग्रह को मजबूत करने के लिए गले में तिलक लगाते हैं।

हृदय में ईश्वर का वास होता है। छाती पर तिलक लगाने का अर्थ है कि हम ईश्वर को तिलक कर रहे हैं। छाती पर तिलक लगाने से सभी ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। मन में भय, क्रोध, लालसा, अशांति की समस्या दूर रहती है। मन शांत होने के साथ ही मन में सद्भावना उत्पन्न होती है। भुजाएं बल और साहस का प्रतीक होती हैं। यहां तिलक लगाने से साहस में वृद्धि होती है। भुजा का संबंध शुक्र ग्रह से होता है और यहां तिलक लगाने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है।

स्नान करने के बाद पहले देवता को तिलक लगाने के बाद स्वयं को तिलक लगाया जाता है। स्वयं को अनामिका अंगुली से और दूसरे को अंगूठे से तिलक लगाते हैं। तिलक को लगाकर मांस मदिरा का सेवन निषिद्ध है।

ज्योतिष के अनुसार ग्रहों को मजबूत करने के लिए भी तिलक लगाएं जाते हैं।सूर्य ग्रह को मजबूत करने के लिए लाल चंदन का तिलक अनामिका अंगुली से लगाते हैं। चंद्रमा ग्रह को मजबूत करने के लिए सफेद चंदन का तिलक कनिष्ठा अंगुली से लगाएं।मंगल ग्रह को मजबूत करने के लिए नारंगी सिंदूर का तिलक अनामिका अंगुली से लगाएं। बुध ग्रह को मजबूत करने के लिए अष्टगंध का तिलक कनिष्ठा अंगुली से लगाएं। बृहस्पति ग्रह को मजबूत करने के लिए केसर का तिलक तर्जनी अंगुली से लगाया जाता है।

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