
(दिव्यराष्ट्र के लिए संजय अग्रवाला,जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)
भारतीय ऑटो उद्योग लंबे समय से उच्च कर दरों और कमजोर उपभोक्ता मांग के दोहरे दबाव का सामना कर रहा है। इस परिदृश्य में केंद्र सरकार का दोपहिया और चारपहिया वाहनों पर जीएसटी को 28% से घटाकर 18% करने का प्रस्ताव उद्योग जगत के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है। यह कदम केवल कर राहत भर नहीं है; इसका उद्देश्य वाहन खरीदने की क्षमता को बढ़ाना, एंट्री-लेवल सेगमेंट को फिर से जीवंत करना और व्यापक पैमाने पर मांग को गति देना है। लेकिन सवाल यह है कि इस नीति का दीर्घकालिक असर कितना स्थायी होगा और इससे उद्योग की संरचना किस तरह बदल सकती है? भारत का दोपहिया बाजार, जो दशकों से 100–150 सीसी वाले कम्यूटर मॉडलों पर टिका हुआ था, पिछले कुछ वर्षों में अपनी पकड़ खो रहा था। उपभोक्ता अब अधिक फीचर-युक्त, प्रीमियम विकल्पों की ओर बढ़ रहे थे। ग्रामीण और अर्ध-शहरी बाजार, जो कीमत के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, लगातार महंगे होते वाहनों के कारण हिचकिचा रहे थे। यदि पेट्रोल मोटरसाइकिलों और स्कूटरों पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दी जाती है, तो अनुमान है कि कीमतें लगभग 8–10% तक कम हो सकती हैं। इसका सीधा असर इस बात पर पड़ेगा कि 80–90 हज़ार रुपये की रेंज वाले स्कूटर पर लगभग 6–9 हज़ार रुपये की बचत होगी। यह बचत ग्रामीण ग्राहकों को फिर से आकर्षित कर सकती है और एंट्री-लेवल मोटरसाइकिलों के लिए एक बार फिर मांग का द्वार खोल सकती है। हालांकि यह कटौती केवल एंट्री-लेवल के लिए ही फायदेमंद नहीं है। 200–350 सीसी श्रेणी के प्रीमियम मोटरसाइकिलों की कीमतों में भी लगभग 30 हज़ार रुपये या उससे अधिक की कमी आ सकती है। इससे उन ग्राहकों के लिए अपग्रेड का सपना साकार हो सकता है, जो लंबे समय से रॉयल एनफील्ड या बजाज की प्रीमियम बाइक्स की ओर देख रहे थे लेकिन ऊँची कीमतों के कारण निर्णय नहीं ले पा रहे थे। यह कदम उद्योग में कुल मिलाकर एक सकारात्मक उछाल ला सकता है, लेकिन अंततः यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उपभोक्ता का मनोविज्ञान किस दिशा में जाता है और कंपनियां इस मौके का कितना सदुपयोग करती हैं।
जहां तक डीलरों का सवाल है, यह कटौती उनके लिए एक सुनहरा अवसर बन सकती है। आने वाले त्योहारी सीज़न में बिक्री का जोश वर्षों में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुंच सकता है। अधिक बिक्री का मतलब है तेज़ी से इन्वेंटरी टर्नओवर, कम वर्किंग कैपिटल की जरूरत, बैंक से लिए गए उधार पर कम ब्याज और अंततः बेहतर लाभप्रदता। दूसरे शब्दों में, यह नीति डीलरशिप नेटवर्क को एक नई ऊर्जा दे सकती है और उनके वित्तीय स्वास्थ्य को मजबूत कर सकती है।
लेकिन हर नीति के कुछ अनपेक्षित परिणाम भी होते हैं। इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन, जो अब तक 5% की न्यूनतम जीएसटी दर और सब्सिडी की वजह से प्रतिस्पर्धा में आगे थे, अचानक अपनी लागतीय बढ़त खो सकते हैं। जब पेट्रोल बाइक की कीमतें गिरेंगी तो कई मूल्य-संवेदनशील ग्राहक ईवी की बजाय आईसीई (आंतरिक दहन इंजन) विकल्प को ही प्राथमिकता दे सकते हैं। अल्पावधि में ईवी की बिक्री पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है, जब तक कि ईवी निर्माता केवल कम लागत ही नहीं बल्कि बैटरी रेंज, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और टिकाऊपन जैसे कारकों पर भी अपनी वैल्यू प्रपोज़िशन मजबूत न करें।
चारपहिया वाहनों के मामले में प्रस्तावित जीएसटी दर कटौती का लाभ मुख्यतः मास-मार्केट वाहनों को मिलेगा। 1200 सीसी तक के इंजन और 4 मीटर तक की लंबाई वाली पेट्रोल कारों की कीमतें 10–12% तक घट सकती हैं। इसका सीधा फायदा मारुति, हुंडई, टाटा, होंडा, टोयोटा और महिंद्रा जैसी कंपनियों को होगा, जो एंट्री और मिड-सेगमेंट में दबदबा बनाए हुए हैं। खास तौर पर कॉम्पैक्ट एसयूवी सेगमेंट को इससे सबसे ज्यादा लाभ होगा। पहले से ही एसयूवी-करण की प्रवृत्ति भारतीय कार बाजार को बदल रही है और अब टैक्स लाभ से टाटा नेक्सन, हुंडई वेन्यू, किया सोनेट जैसी गाड़ियां और ज्यादा आकर्षक हो जाएंगी।
इसके विपरीत, डीजल वाहनों के लिए यह खबर अच्छी नहीं है। जीएसटी संरचना में डीजल कारों के लिए कोई रियायत नहीं है, जिससे पेट्रोल और डीजल मॉडलों के बीच कीमत का अंतर और बढ़ जाएगा। भारत में डीजल की मांग पहले ही गिरावट पर है और यह नीति उस प्रवृत्ति को तेज कर सकती है। प्रीमियम और लग्ज़री कार कंपनियां भी इस कटौती का लाभ नहीं उठा पाएंगी क्योंकि उनकी गाड़ियां आमतौर पर 1500 सीसी से ऊपर के इंजन और 4 मीटर से अधिक लंबाई के साथ आती हैं। उनके लिए उच्चतम कर स्लैब बरकरार रहेगा। स्पष्ट है कि यह प्रस्ताव उद्योग के हर हिस्से को समान रूप से प्रभावित नहीं करेगा। यह उन ब्रांड्स के लिए वरदान होगा जो सस्ते और ईंधन-किफायती वाहनों में काम करते हैं, लेकिन उन कंपनियों के लिए कोई राहत नहीं जो लग्जरी सेगमेंट में हैं। इसके बावजूद, यह कदम भारतीय ऑटो उद्योग में बिक्री की एक नई लहर ला सकता है। हालांकि, यह कटौती अपने आप में समाधान नहीं है। भारतीय उपभोक्ता का स्वाद बदल चुका है। अब उन्हें केवल सस्ते वाहन नहीं चाहिए, बल्कि तकनीक, सुरक्षा और स्टाइल भी चाहिए। यदि कंपनियां इस मौके पर नवाचार में निवेश नहीं करतीं, नए फीचर और कनेक्टेड टेक्नोलॉजी नहीं लातीं, तो जीएसटी कटौती का लाभ अल्पकालिक होगा। उद्योग को केवल लागत पर ध्यान देने के बजाय अनुसंधान एवं विकास, इलेक्ट्रिफिकेशन और भावी गतिशीलता समाधानों में निवेश करना होगा। इस नीति का सबसे बड़ा सबक यही है कि टैक्स में कमी केवल सांस लेने का समय देती है; असली जीवनदान नवाचार से ही मिलेगा। जो कंपनियां भविष्य की जरूरतों को पहचानकर कदम उठाएंगी, वही इस अवसर का सबसे ज्यादा लाभ उठाएंगी। बाकी के लिए यह राहत केवल थोड़े समय के लिए होगी। अंततः, प्रस्तावित जीएसटी दर कटौती भारत के ऑटो उद्योग के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। यह न केवल बिक्री और उत्पादन को बढ़ावा दे सकती है, बल्कि उद्योग को उपभोक्ताओं की नई आकांक्षाओं के अनुरूप ढालने का मौका भी देती है। अब जिम्मेदारी कंपनियों की है कि वे इस मौके को कैसे इस्तेमाल करती हैं। अगर वे टिकाऊ, तकनीकी और सुरक्षित वाहनों की दिशा में ठोस कदम उठाती हैं, तो यह जीएसटी कटौती भारत को ऑटोमोबाइल क्रांति के अगले चरण में ले जा सकती है। अन्यथा, यह सिर्फ एक क्षणिक राहत बनकर रह जाएगी।