
घुसपैठ भारत के लिए बड़ी समस्या – राज्यपाल आर.एन. रवि
नई दिल्ली, दिव्यराष्ट्र*सीमा जागरण मंच दिल्ली, मोतीलाल नेहरू कॉलेज (सांध्य) दिल्ली विश्वविद्यालय, तथा सेंटर फॉर इंडिपेंडेंस एंड पार्टीशन स्टडीज के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सीमा विमर्श का दिल्ली विश्वविद्यालय के वायस रीगल लॉज में शुभारम्भ हुआ। इस सम्मेलन में उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर एन रवि, विशिष्ट अतिथि डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जी सतीश रेड्डी, कार्यक्रम अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, सीमा जागरण मंच के प्रांत अध्यक्ष सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल नितिन कोहली एवं मोतीलाल नेहरू सांध्य कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संदीप गर्ग मंचासीन रहे। राष्ट्रगान, दीप प्रज्ज्वलन और कुलगीत से सम्मेलन का विधिवत आरंभ हुआ।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर एन रवि जी ने अपने विस्तृत उद्बोधन में सीमापार घुसपैठ को भारत के अस्तित्व की समस्या के रूप में निरूपित किया। उन्होंने कहा कि सीमा पार घुसपैठ को रोकने के लिए जितनी आवश्यकता सेना और संसाधनों की है उतनी ही आवश्यकता सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ समाज के समन्वय की भी है। हमने आजादी के बाद देखा कि कैसे तत्कालीन सरकार ने नार्थ ईस्ट क्षेत्र के लिए वेरियर एल्विन को अनेक प्रकार के अधिकार दिए और वेरियर एल्विन ने अपनी वैचारिकी के आधार पर नॉर्थ ईस्ट की व्याख्या की। आगे चलकर ये माना जाने लगा कि सीमावर्ती क्षेत्रों के लोग हमसे भिन्न हैं लेकिन वास्तविकता ये है कि सीमावर्ती जनजाति समाज, वहां के नागाओं की भी पूर्व कथाएं कृष्ण, रुक्मणि इत्यादि से जुड़ती हुई दिखाई देती है अर्थात वे सब भारतीय राष्ट्र की ही संकल्पना का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने कहा कि भारत का निर्माण वेदों की परंपरा और ऋषियों द्वारा आध्यात्मिक विकास के रूप में हुआ है। हमारा देश विविधता में एकता वाला देश है। जब हम अपने राष्ट्र के मूल को समझ पाएंगे तभी घुसपैठ की मूल समस्या से निजात पा सकेंगे और सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों से हमारा जुड़ाव हो सकेगा। आर एन रवि ने आगे कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसी उद्देश्य से सीमावर्ती क्षेत्रों विशेषकर जनजातियों के मध्य बहुत अच्छा कार्य किया है। उन्होंने कहा कि उपनिवेशवाद ने हमारी विविधता को भिन्नता में बदल दिया है। विविधता हमारी शोभा है , वह हमारी ताकत है। इस अवसर पर उन्होंने बदलते डेमोग्राफी की चुनौतियों को भी रेखांकित किया।
विशिष्ट अतिथि डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जी सतीश रेड्डी ने इस अवसर पर कहा कि सीमा पर घुसपैठ आज एक ज्वलंत विषय है इसके सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी पहलुओं पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। सीमाओं पर अतिक्रमण व घुसपैठ के साथ ही अनेक प्रकार की प्राकृतिक समस्याएँ भी हैं कहीं बहुत अधिक गर्मी तो कहीं बहुत अधिक ठंड के कारण भी अनेक प्रकार की चुनौतियां भी मौजूद है। रक्षा बजट में निरन्तर वृद्धि और विभिन्न नए संसाधनों की पूर्ति आज अत्यावश्यक है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत का मान बढ़ाया है। उन्होंने इस विषय पर सम्मेलन के लिए सीमा जागरण मंच व विश्वविद्यालय के को शुभकामनाएं दी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने समस्त अतिथियों का स्वागत अभिनंदन करते हुए कहा कि आज हमारे सामने सबसे मुख्य प्रश्न यह कि इस आयोजन की आवश्यकता क्यों है? जब हमने इस पर गंभीरता से विचार किया तो यह स्पष्ट हुआ कि सीमा सुरक्षा, संप्रभुता एवं सीमा पार घुसपैठ पर चर्चा आज के भारत की आवश्यकता है इसलिए इस महत्वपूर्ण विषय पर यह वृहद आयोजन हमारे द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सीमाओं की सुरक्षा राष्ट्र की एकता व अखण्डता के लिए अनिवार्य है। हमने पूर्व में ही स्वतंत्रता के समय भारत विभाजन का असह्य दुःख झेला है वैसी परिस्थिति फिर न उत्पन्न हो इसलिए सीमाओं की सुरक्षा बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत के मन को बदलने की आवश्यकता है। युवाओं में राष्ट्रप्रेम जगाते हुए उन्हें अतीत की घटनाओं को सत्यता के साथ देखने की आवश्यकता है। इकबाल जैसे शायर जिन्होंने अल्पायु में सारे जहां से अच्छा लिखकर अपनी एक पहचान बनाई लेकिन वही बाद में जब भारत के लिए विषैले विचारों के पोषक बने जिसका दुष्परिणाम भारत विभाजन के रूप में दिखाई दिया उन सत्यों पर गहराई से विचार की जरूरत है इसलिए हमने इकबाल को विश्वविद्यालय के सभी सिलेबस से हटाने का निर्णय किया है। सीमाओं की असुरक्षा ने हमें वर्षों की लंबी गुलामी दी थी इसलिए आज बदलते भारत में सीमा विमर्श की आवश्यकता है।
इस अवसर पर मोतीलाल नेहरू कॉलेज सांध्य के प्रधानाचार्य प्रो संदीप गर्ग ने कहा कि यह सम्मेलन सीमा विमर्श पर चिंतन का एक महायज्ञ है जो राष्ट्र हित से जुड़ा हुआ है। कार्यक्रम संयोजक डॉ. श्याम नारायण पांडेय ने सीमा विमर्श के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह आज के भारत की एक ज्वलन्त समस्या है इसलिए इस महत्वपूर्ण विषय पर हम दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं जिसमें बड़ी संख्या में सेना के कर्नल, लेफ्टिनेंट जनरल, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों की सहभागिता हुई है। उन्होंने कहा कि सीमा वहां नहीं होती जहाँ सरहदें होती है। सीमा वहां होती है जहां राष्ट्र भाव समाप्त हो जाते हैं। अंत में सीमा जागरण मंच दिल्ली के प्रांत अध्यक्ष, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल नितिन कोहली जी का उद्बोधन हुआ उन्होंने इस आयोजन की सार्थकता पर बल देते हुए कहा कि बदलते और बढ़ते भारत में सीमाओं की सुरक्षा अनिवार्य है।सीमापार घुसपैठ एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में आज हमारे सामने है।