सरदार पटेल ने ही 562 रियासतों का भारत में कराया विलय*
-पटेल की 150 वीं जयंती पर विशेष लेख

। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सरदार पटेल के लिए कहा था कि ‘
वे एक कुशल और ईमानदार व्यक्ति हैं और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्ध हैं।” गांधी और पटेल के सम्बंध काफी घनिष्ट थे। महात्मा गांधी ने बारडोली सत्याग्रह में पटेल को महान संगठनात्मक कौशल के लिए ‘सरदार” की उपाधि दी थी। पटेल वह शख़्सियत थे, जिनके प्रभाव से भारत एक सूत्र में पिरोया जा सका। उन्होंने एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 562 रियासतों को भारतीय संघ में विलय कराया। अंग्रेजों की वह चाल, जिन्होंने जाते हुए भारतीय रियासतों को स्वतंत्रता के अधिकार दे गए थे। इसमें यह बताया गया कि रियासतों की इच्छा है कि वे स्वतंत्र रहे या भारत या पाकिस्तान का अंग बन जाए। यह एक ऐसा तीर था, जिससे अंग्रेज जाते-जाते भारत को सैकड़ों भागों में बांट कर गए थे। सरदार पटेल की सुझ बुझ का ही नतीजा था कि उन्होंने भारत के एकीकरण में विशेष रूप से 562 रियासतों को भारत में विलय कराया। सरदार पटेल एक ऐसी शख्सियत, जिनकी दूरदर्शिता और अदम्य साहस आज भी भारत के एकीकरण की कहानी बयां करता है। सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। आज हम उनकी 150 वीं जयंती मना रहे हैं। उनका जन्मदिवस भारत में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे कठोर परिश्रम, अनुशासन और आत्मनिर्भरता जैसे गुणों से भरपूर थे, जो बाद में उनके नेतृत्व और सेवा के दृष्टिकोण में देखने को मिलते थे। ये गुण बचपन से ही दिखाई देने लगे थे। वल्लभभाई ने देशभक्ति की प्रेरणा अपने पिता झावेरभाई पटेल से प्राप्त की थी। उनके पिता झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में अपनी सेवा दी थी। इन शुरुआती अनुभवों ने न्याय, सम्मान और लचीलापन के प्रति एक मजबूत प्रतिबद्धता को बढ़ावा दिया। उन दिनों वल्लभभाई पटेल गुजरात के सबसे महंगे वकीलों में से एक माने जाते थे। पटेल ने पहली बार गांधी को गुजरात क्लब में 1916 में देखा और कहा था- हमारे देश में पहले से महात्माओं की कमी नहीं है, हमें कोई काम करने वाला चाहिए। उस समय पटेल अपने साथी वकील गणेश वासुदेव मावलंकर के साथ कोई खेल.खेल रहे थे। लेकिन बहुत जल्द ही पटेल की गांधी का लेकर धारणा बदल गई। चंपारण में बापू के जादू का असर उन पर हुआ। वे जुड़ गए और खेड़ा का आंदोलन हुआ तो पटेल गांधी के और करीब आ गए। असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने के साथ ही पटेल ने अपनी वकालत छोड़ कर पक्के गांधी भक्त बन गए और इसके बाद हुआ बारदोली सत्याग्रह, जिसमें पटेल पहली बार सारे देश में मशहूर हो गए। देश को 15 अगस्त, 1947 को आजाद होना था लेकिन उससे एक साल पहले ब्रिटेन ने भारतीय हाथों में सत्ता देने का फैसला कर लिया था, अंतरिम सरकार बननी थी। यह तय हुआ कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही देश का प्रधानमंत्री बनेगा। उस दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे, वे गत छह साल से इस पद पर थे। इस दौरान गांधी, नेहरू के हाथ में कांग्रेस की कमान देने का मानस बना चुके थे, 20 अप्रैल, 1946 को उन्होंने मौलाना को पत्र लिखकर कहा कि वे बयान जारी कर कहे कि अब वे अध्यक्ष नहीं बने रहना चाहते हैं। गांधी ने यह भी साफ कर दिया कि अगर इस बार मुझसे राय मांगी जाएगी तो मैं नेहरू को पसंद करूंगा। इसके कई कारण हैं, लेकिन मैं जिक्र नहीं करना चाहता। इस पत्र के बारे में पूरी कांग्रेस में सूचना फैल गई कि गांधी नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। 29 अप्रैल, 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाना था, जिसे कुछ महीने बाद ही अंतरिम सरकार में भारत का प्रधानमंत्री बनना था। इस बैठक में महात्मा गांधी के अलावा नेहरू, सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार के साथ कई बड़े कांग्रेसी नेता शामिल थे। परपंरा के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थीं और 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित करके भेजा था। बची हुई तीन कमेटियों ने आचार्य जेबी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था। किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने अध्यक्ष पद के लिए नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया था, जबकि सारी कमेटियां अच्छी तरह जानती थी कि महात्मा गांधी पं. नेहरू को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। लेकिन गांधी ने सबको नजरअंदाज करते हुए नेहरू को निर्विरोध अध्यक्ष बनाया। सरदार पटेल देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने। उनको भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है। उन्होंने भारत की आजादी के बाद स्वतंत्र रियासतों को भारत में एकीकृत करके एक अखंड भारत का निर्माण किया। उन्हें भारत का लौह पुरुष और ‘भारत के बिस्मार्क” के रूप में ख्याति मिली थी। पटेल वकालत के दौरान ही नशा, छुआछूत और महिलाओं पर अत्याचार जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जमकर आवाज उठाई और सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय बने रहे। उनके योगदान के सम्मान में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा गुजरात में
बनाई गई है। यह प्रतिमा वल्लभभाई पटेल की 597 फुट (182 मीटर) ऊंची है, यह प्रतिमा आंशिक रूप से भारत भर के किसानों द्वारा पुनर्चक्रित किए गए लोहे से निर्मित है। यह बनाकर सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि दी गई है ।
बहरहाल हम यही कह सकते हैं कि देश की आजादी और देश की स्वतंत्रता के बाद भारत में जो योगदान सरदार पटेल का रहा है, उसके लिए पूरा राष्ट्र उनके प्रति ॠणी रहेगा।




