
बाल विवाह एक ऐसी कुरीति है, जो बच्चों की मासूमियत और उनके सपनों को छीन लेती है। यह न केवल उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है बल्कि उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के रास्ते भी बंद कर देता है। इसके नतीजे पीढ़ियों तक भुगतने पड़ते हैं। राजस्थान जैसे राज्य में तो यह समस्या और भी व्यापक है। यहां बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। अक्षय तृतीया पर बड़े पैमाने पर सामूहिक बाल विवाह के लिए चर्चित सूबे में बाल विवाह की स्थिति यह है कि यहां हर चौथी लड़की का विवाह बालिग होने से पहले ही कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (सन 2019-21) के अनुसार, राजस्थान में 20-24 आयु वर्ग की 25.4% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से पहले ही कर दिया गया था। यह राष्ट्रीय औसत (23.3%) से अधिक है। यह स्थिति विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है, जहां बाल विवाह की जड़ें काफी गहरी हैं।
जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता भुवन ऋभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ के मुताबिक राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बाल विवाह की दर राज्य में सबसे ज्यादा 42.6% है। इसके बाद भीलवाड़ा (41.8%), झालावाड़ (37.8%), टोंक (37.2%) और सवाई माधोपुर (35.4%) जैसे जिलों में भी बाल विवाह की दर चिंताजनक रूप से बहुत ऊंची है। यानी, इन जिलों में हर तीसरी लड़की को खेलने और पढ़ाई की उम्र में विवाह के बंधन में बांध दिया जाता है।
यह तब है जब भारत में बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) 2006 लागू है, जिसमें बाल विवाह करने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद, यह गंभीर समस्या बनी हुई है।
सकारात्मक पहल और न्यायपालिका की भूमिका*
हाल के दिनों में बाल विवाह के खिलाफ न केवल जागरुकता बढ़ी है बल्कि सरकार और अदालतों ने भी इसे संज्ञान में लेना शुरू किया है। अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें रोकथाम के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए। इसके बाद भारत सरकार ने नवंबर 2024 में ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान की शुरुआत की।
यह अभियान नागरिक समाज संगठनों के नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) के सहयोग से चल रहा है। 250 से अधिक संगठनों के साथ मिलकर जेआरसी 434 जिलों में काम कर रहा है, ताकि वर्ष 2030 तक भारत को बाल विवाह मुक्त बनाया जा सके। इस दिशा में स्पेक्ट्रा संस्थान भी जागरूकता और सामुदायिक हस्तक्षेप के माध्यम से सक्रिय योगदान दे रहा है।
राजस्थान की पहल*
राजस्थान में इस दिशा में कई ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने जेआरसी की याचिका पर फैसला सुनाया कि ग्राम प्रधानों को उनके गांव में किसी भी बाल विवाह के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।
राज्य सरकार ने मार्च 2025 में आदेश जारी कर प्रत्येक विवाह निमंत्रण कार्ड पर दूल्हा-दुल्हन की जन्मतिथि छापना अनिवार्य किया।
कानून प्रवर्तन तंत्र को सक्रिय करते हुए तेजी से कार्रवाई की जा रही है।
बाल विवाह करने वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं से वंचित करने का प्रावधान भी लागू किया गया।
इन सभी पहलों में स्पेक्ट्रा संस्थान जैसी संस्थाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, जो गांव-गांव जाकर बच्चों और माता-पिता को बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक कर रही हैं।
शिक्षा और जन-जागरूकता की भूमिका*
बाल विवाह रोकने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने, ड्रॉपआउट दर कम करने और स्कूलों में विशेष जागरूकता कक्षाओं की जरूरत है। पंचायतों, धर्मगुरुओं और सामुदायिक संस्थाओं को भी इस अभियान में भागीदार बनाना आवश्यक है।
स्पेक्ट्रा संस्थान ने भी इस दिशा में कई कार्यशालाएँ और जन-जागरूकता अभियान चलाए हैं, जिससे ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे सोच में बदलाव आ रहा है।
निष्कर्ष*
राजस्थान में बाल विवाह के खिलाफ सरकार, न्यायपालिका और नागरिक समाज संगठनों की संयुक्त पहल ने सकारात्मक बदलाव की नींव रखी है। यह एक ऐसा आंदोलन है, जिसे और तेज करने की जरूरत है, ताकि हर बच्चा बाल विवाह के भय से मुक्त होकर सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जी सके।