
ICMR-INDIAB स्टडी
चेन्नई, दिव्यराष्ट्र*– नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक नई स्टडी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज (ICMR-INDIAB) के अनुसार, भारत में खान-पान की बदलती आदतों की वजह से डायबिटीज और मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। यह स्टडी मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) के साथ मिलकर की गई। इसमें भारत के 36 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और दिल्ली के शहरी व ग्रामीण इलाकों से 1,21,077 वयस्कों को शामिल किया गया। हर पांचवें व्यक्ति के खान-पान की जानकारी इकट्ठा कर यह देखा गया कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में लोग क्या खाते हैं और इसका डायबिटीज व मोटापे जैसे स्वास्थ्य जोखिमों से क्या संबंध है। इसमें पता चला कि भारतीय आहार में कार्बोहाइड्रेट (जैसे चावल, गेहूं, चीनी), फैट (वसा) और प्रोटीन का सेवन अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न है, लेकिन ये बदलाव स्वास्थ्य समस्याओं और मेटाबॉलिक जोखिमों को बढ़ा रहे हैं।
अध्ययन में क्या पता चला?
भारत के लोगों की डाइटरी प्रोफाइल के प्रमुख निष्कर्ष मैक्रोन्यूट्रिएंट्स (कार्बोहाइड्रेट, फैट और प्रोटीन) के सेवन के संदर्भ में निम्नलिखित हैं:
कार्बोहाइड्रेट का सेवन:
• राज्यों में पोषक तत्वों के सेवन में भारी विविधता थी, लेकिन अधिकांश भारतीय अपनी कैलोरी का 62% कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त करते हैं, जो विश्व में सबसे अधिक है।
इसका अधिकांश हिस्सा कम गुणवत्ता वाले स्रोतों जैसे सफेद चावल, मिल्ड साबुत अनाज, और अतिरिक्त चीनी से आता है।
सफेद चावल दक्षिण, पूर्व और उत्तर-पूर्व में आहार में प्रमुख है, जबकि उत्तर और मध्य क्षेत्रों में गेहूं अधिक आम है।
बाजरा (मिलेट्स) केवल तीन राज्यों में मुख्य स्टेपल के रूप में खाया जाता है: कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र, जिनमें प्रमुख प्रकारों में रागी (फिंगर मिलेट), ज्वार (सोरघम) और बाजरा (पर्ल मिलेट) शामिल हैं।
चीनी का अत्यधिक सेवन चिंताजनक है: 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अतिरिक्त चीनी के लिए राष्ट्रीय सिफारिश (<5% ऊर्जा) को पार कर लिया।
डाइटरी फैट का सेवन:
• औसत कुल फैट का सेवन राष्ट्रीय दिशानिर्देशों (≤30% ऊर्जा) के भीतर रहा, लेकिन संतृप्त वसा (सैचुरेटेड फैट) का सेवन चार राज्यों (झारखंड, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर) को छोड़कर सभी राज्यों में मेटाबॉलिक स्वास्थ्य के लिए अनुशंसित सीमा (<7% ऊर्जा) से अधिक था।
• मोनोअनसैचुरेटेड और ओमेगा-3 पॉलीअनसैचुरेटेड फैट का सेवन सभी क्षेत्रों में कम रहा।
प्रोटीन का सेवन:
• भारत में कुल प्रोटीन का सेवन अपर्याप्त है, औसतन दैनिक कैलोरी का 12% प्रोटीन से प्राप्त होता है, जिसमें उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सबसे अधिक सेवन (14%E) देखा गया।
• भारतीय आहार में अधिकांश प्रोटीन पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों जैसे अनाज, दालें और फलियां (9% E) से आता है।
• डेयरी और पशु प्रोटीन का सेवन देशभर में व्यापक रूप से भिन्न था, लेकिन कुल मिलाकर यह कम रहा (क्रमशः 2% E और 1% E)।
कार्बोहाइड्रेट का सेवन और मेटाबॉलिक जोखिम:
उच्च कार्बोहाइड्रेट कैलोरी और इसके प्रमुख स्रोत (सफेद चावल, मिल्ड साबुत अनाज और अतिरिक्त चीनी) बढ़े हुए मेटाबॉलिक जोखिम (डायबिटीज, प्री-डायबिटीज और मोटापा) से जुड़े थे।
आहार में एक साधारण बदलाव मेटाबॉलिक जोखिम को कम कर सकता है:
• मॉडल्ड सब्सटीट्यूशन विश्लेषण में पाया गया कि दैनिक कैलोरी के केवल 5% कार्बोहाइड्रेट को पौधों या डेयरी प्रोटीन से बदलने से डायबिटीज और प्री-डायबिटीज का जोखिम काफी हद तक कम हो सकता है।
• महत्वपूर्ण रूप से, कार्बोहाइड्रेट को रेड मीट प्रोटीन या फैट से बदलने का वही सुरक्षात्मक प्रभाव नहीं था।
डॉ. आर.एम. अंजना, प्रमुख लेखक और प्रेसिडेंट, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन, ने जोर देकर कहा, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय लोग ज्यादातर सफेद चावल और गेहूं के आटे जैसे कार्बोहाइड्रेट वाले खाने पर निर्भर हैं, लेकिन उनका क्वॉलिटी प्रोटीन का सेवन बहुत कम है, जिससे लाखों लोगों को डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ रहा है। सिर्फ सफेद चावल को साबुत गेहूं या बाजरे से बदलना काफी नहीं है। जरूरी है कि कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम की जाए और ज्यादा कैलोरी के लिए प्लांट या डेयरी प्रोटीन्स की मात्रा बढ़ाई जाए।”
सुधा, संयुक्त प्रथम लेखक और वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रमुख, खाद्य पोषण और डायटेटिक्स अनुसंधान विभाग, एमडीआरएफ, ने कहा कि मुख्य कार्बोहाइड्रेट स्रोत भले ही अलग-अलग हों, इसके बावजूद सभी क्षेत्रों में समान मेटाबॉलिक जोखिम देखने को मिले।
डॉ. वी. मोहन, पेपर के वरिष्ठ लेखक और चेयरमैन, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन, ने कहा, “ये राष्ट्रव्यापी निष्कर्ष नीति सुधारों को प्रेरित करने चाहिए, विशेष रूप से खाद्य सब्सिडी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संदेशों के संबंध में, ताकि भारतीयों को पौधों और डेयरी प्रोटीन से भरपूर और कार्बोहाइड्रेट व सैचुरेटेड फैट में कम डाइट का रुख करने में मदद मिले।”
डॉ. शिल्पा भूपतिराजू, को-सीनियर लेखक, ने कहा, “सैचुरेटेड फैट को कम करना एक चुनौती बना हुआ है। स्वस्थ तेलों और अधिक दालों व फलियों को प्रोत्साहित करना राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकता है।”
डॉ. वी. मोहन ने जोर देकर कहा कि ऐसे बदलाव खान-पान की गलत आदतों को सुधारने, प्रोटीन की कमी को पूरा करने और अपनी डाइट को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। चूंकि स्वास्थ्य का मामला राज्य सरकारों के अधीन है, ये निष्कर्ष राज्यों को स्वस्थ खाद्य सब्सिडी पर विचार करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इसके लिए स्वास्थ्य, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण और कल्याण जैसे कई क्षेत्रों को मिलकर काम करना होगा ताकि खाद्य सब्सिडी और जनता तक सही संदेश पहुंचाया जा सके।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज (ICMR-INDIAB) अध्ययन को आईसीएमआर और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था और इसे 15 वर्षों में किया गया। एमडीआरएफ इस अध्ययन के लिए राष्ट्रीय समन्वय केंद्र था।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
1. डॉ. वी. मोहन, चेयरमैन, डॉ. मोहन डायबिटीज स्पेशियलिटी सेंटर और मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन, चेन्नई। ईमेल: drmohans@diabetes.ind.in
2. डॉ. आर.एम. अंजना, मैनेजिंग डायरेक्टर और डायबिटोलॉजिस्ट, डॉ. मोहन डायबिटीज स्पेशियलिटी सेंटर और प्रेसिडेंट, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन, चेन्नई। ईमेल: dranjana@drmohans.com
3. श्रीमती सुधा वासुदेवन, वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख, खाद्य पोषण और डायटेटिक्स अनुसंधान विभाग, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन, चेन्नई। ईमेल: s2r_7@mdrf.in
मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) के विषय में:
मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) चेन्नई, भारत में स्थित एक प्रसिद्ध अनुसंधान संस्थान है। यह डायबिटीज और उससे संबंधित जटिलताओं पर वैज्ञानिक अनुसंधान करने के लिए समर्पित है। इस फाउंडेशन की स्थापना 1996 में भारत के अग्रणी डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. वी. मोहन द्वारा की गई थी। एमडीआरएफ का प्राथमिक ध्यान डायबिटीज के कारणों, रोकथाम और प्रबंधन के साथ-साथ इससे जुड़ी जटिलताओं को समझने पर है। एमडीआरएफ में किया जाने वाला अनुसंधान डायबिटीज के विभिन्न पहलुओं को शामिल करता है, जिसमें महामारी विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी), आनुवंशिकी (जेनेटिक्स), नैदानिक प्रबंधन (क्लिनिकल मैनेजमेंट), और सार्वजनिक स्वास्थ्य शामिल हैं। एमडीआरएफ डायबिटीज के बारे में ज्ञान को बढ़ाने, रोगी देखभाल में सुधार करने और भारत और दुनियाभर में डायबिटीज के बढ़ते बोझ से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।