Home एजुकेशन एनआईआईटी यूनिवर्सिटी का ‘काली पहाड़ी से हरी पहाड़ी‘ तक का शानदार सफर

एनआईआईटी यूनिवर्सिटी का ‘काली पहाड़ी से हरी पहाड़ी‘ तक का शानदार सफर

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एनआईआईटी यूनिवर्सिटी का अरावली में 500 पौधों का हरित अभियान

नीमराना, अलवर दिव्यराष्ट्र* एनआईआईटी यूनिवर्सिटी (एनयू) ने राजस्थान के अपने नीमराणा परिसर में एक उच्च-प्रभावी वृक्षारोपण अभियान के माध्यम से वन महोत्सव 2025 मनाया, जिससे अरावली क्षेत्र में सतत विकास और ईकोलॉजिकल रेस्टोरेशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव, एनआईआईटी यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष अमिताभ कांत और एनआईआईटी यूनिवर्सिटी के फाउण्डर राजेंद्र एस. पवार ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराई और भारत के ग्रीन फ्यूचर को आकार देने में एनआईआईटी यूनिवर्सिटी की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया। इस अवसर पर, अरावली के परिदृश्य के पुनरुद्धार और वर्षों से पर्यावरणीय क्षरण के कारण खोई हरियाली को पुनः स्थापित करने के लिए 500 पौधे लगा कर काली कही जाने वाली अरावली पहाड़ी को हरा भरा कर दिया।

गौरतलब है कि विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक, अरावली पर्वत श्रृंखलाएं उत्तर-पश्चिमी भारत में ईकोलॉजिकल बैलेंस बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये मरुस्थलीकरण के विरुद्ध एक प्राकृतिक अवरोध का काम करती हैं, वॉटर रेस्टोरेशन में सहायक होती हैं और समृद्ध बायोडायवर्सिटी में मदद करती हैं। हालांकि, दशकों से वनों की कटाई, अवैध खनन और शहरी विस्तार के कारण इनका तेज़ी से क्षरण हुआ है। इस पृष्ठभूमि में, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियानों सहित राष्ट्रीय उद्यान की निरंतर हरित पहल, क्षेत्र की प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के प्रति उसकी दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

इस वन महोत्सव के माध्यम से, एनयू न केवल वृक्षों का सम्मान कर रहा है, बल्कि रेस्पोंसबल कैम्पस डेवलपमेंट और सस्टेनेबल एज्यूकेशन के लिए एक राष्ट्रीय मॉडल के रूप में अपनी स्थिति को भी सुदृढ़ कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, एनयू ने 1.5 लाख से अधिक पौधे लगाए हैं और अरावली पर्वतमाला के एक कभी उजड़े हुए हिस्से का सफलतापूर्वक कायाकल्प किया है। इस विशाल ग्रीन इनिशिएटिव ने, उन्नत जल संरक्षण परियोजनाओं के साथ मिलकर, स्थानीय जल स्तर को ऊपर उठाने और 2 डिग्री ठंडा सूक्ष्म जलवायु बनाने और आसपास के क्षेत्रों की तुलना में 50 प्रतिशत बेहतर वायु गुणवत्ता प्रदान करने में मदद की है। इसी आधार पर, यूनिवर्सिटी ने एक एकीकृत स्थिरता मॉडल लागू किया है, साबी नदी को पुनर्जीवित किया है, 15 चेक डैम और 5 रिचार्ज पिट बनाए हैं, और सीवेज रीसाइक्लिंग सिस्टम स्थापित किए हैं जिससे परिसर पूरी तरह से जल-आत्मनिर्भर हो गया है।

इस अवसर पर, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, ‘‘भारत की विकास गाथा स्थायित्व पर आधारित होगी और एनआईआईटी यूनिवर्सिटी इसका एक अच्छा उदाहरण है। शैक्षणिक संस्थान आदर्श प्रस्तुत करने और हमारे देश की भावी पीढ़ियों को यह सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि परिसर के बाहर भी जीवन के सभी पहलुओं में पर्यावरणीय रूप से कैसे ज़िम्मेदार रहें। यह बहुत अच्छी बात है कि एनआईआईटी अरावली के आसपास के ईको सिस्टम को पुनर्स्थापित करना चाहता है, स्थानीय जल निकायों का संरक्षण करना चाहता है और हरित बुनियादी ढाँचे को प्रोत्साहित करना चाहता है।‘‘

यादव ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा ‘‘अरावली को पुनर्जीवित करना मेरी व्यक्तिगत प्राथमिकता है, और आज यहाँ 500 से ज़्यादा पौधे लगाने के आयोजन में भाग लेकर मुझे बहुत खुशी हुई। इन प्राचीन पहाड़ियों को हरा-भरा बनाना सिर्फ़ ईकोलॉजी से जुड़ा नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारी विरासत को संरक्षित करने से भी जुड़ा है।‘‘
वर्ष 2009 में स्थापित, राजस्थान के नीमराणा में स्थित एनयू का ग्रीन कैंपस सभी क्षेत्रीय पर्यावरणीय मानदण्डों के अनुरूप है और इसमें पर्यावरण के प्रति जागरूक वास्तुशिल्प डिज़ाइन है जो इसके कार्बन फुटप्रिंट को काफ़ी कम करता है। कैंपस का लेआउट भूमि की नेचुरल कॉन्टूर का सम्मान करता है, निर्माण के ईकोलॉजिकल इम्पेक्ट को कम करता है और क्षेत्र की भूवैज्ञानिक अखंडता को संरक्षित करता है।

इस कार्यक्रम में एनआईआईटी यूनिवर्सिटी के चेयरमैन अमिताभ कांत ने कहा, ‘‘एनआईआईटी यूनिवर्सिटी शिक्षा के एक नए मॉडल का प्रतिनिधित्व करता है, जो स्थिरता और सामाजिक उत्तरदायित्व में गहराई से निहित है।

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