मुंबई , दिव्यराष्ट्र:/ नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने हाल ही में एक अत्यंत दुर्लभ और जानलेवा हो सकने वाली श्वसन नली की बीमारी से पीड़ित आठ माह की एक बालिका का सफलतापूर्वक निदान और उपचार किया। यह शिशु जन्म से ही बार-बार सांस लेने में तकलीफ और वजन न बढ़ने की समस्या से जूझ रही थी।“शिशु को जन्म से ही साँस लेते समय असामान्य आवाज़ आती थी, जो रोने या लेटने की स्थिति में और बढ़ जाती थी। उसे दूध पीने में कठिनाई होती थी और वज़न भी नहीं बढ़ रहा था, जिससे वायुमार्ग में किसी गंभीर समस्या की आशंका हुई। जन्म के मात्र छह सप्ताह बाद ही सांस फूलने के कारण उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था, जहां लक्षणों के आधार पर इलाज किया गया। इसके बावजूद उसकी परेशानी कई महीनों तक बनी रही। सात महीने की उम्र में उसे दोबारा गंभीर श्वसन संकट के चलते अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जहां उसे आईसीयू में इलाज की आवश्यकता पड़ी।तीसरी बार इसी तरह की शिकायतों के साथ शिशु को नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई लाया गया, जहां पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी और ईएनटी विभाग की टीम ने तुरंत और विस्तृत जांच की। जांच में शिशु में स्ट्राइडर (तेज़ आवाज़ के साथ सांस लेना) और विकास में कमी के लक्षण पाए गए।अस्पताल में की गई फ्लेक्सिबल ब्रोंकोस्कोपी जांच में यह सामने आया कि शिशु की वोकल कॉर्ड्स से लेकर श्वासनली के निचले हिस्से तक एक बड़ा एयरवे हीमांजियोमा फैला हुआ है। इसे ग्रेड-3 एयरवे हीमांजियोमा के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिससे श्वसन मार्ग का मुहाना काफी संकुचित हो गया था। यही कारण था कि शिशु को बार-बार सांस लेने में तकलीफ, भोजन करने में कठिनाई और वजन न बढ़ने की समस्या हो रही थी।इस बारे में जानकारी देते हुए डॉ. इंदु खोसला, सीनियर कंसल्टेंट – पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी, नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा,“एयरवे हीमांजियोमा शिशुओं में शोरयुक्त सांस लेने का एक दुर्लभ लेकिन गंभीर कारण है। कई बार इसे लैरिंगोमलेशिया, संक्रमण या एसिड रिफ्लक्स समझ लिया जाता है। समय पर सही निदान बेहद ज़रूरी है, क्योंकि शुरुआती अवस्था में पहचान होने पर अधिकांश मामलों का इलाज दवाओं से संभव है और सर्जरी से बचा जा सकता है।”
निदान के बाद शिशु को ओरल प्रोप्रानोलोल दवा दी गई, साथ ही लैंसोप्राज़ोल के माध्यम से एंटी-रिफ्लक्स थेरेपी तथा कैल्शियम और विटामिन-डी सप्लीमेंट भी शुरू किए गए। माता-पिता को घर पर देखभाल और सावधानियों के बारे में विस्तृत परामर्श दिया गया, जिसके बाद कड़ी निगरानी में शिशु को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।फॉलो-अप के दौरान शिशु की हालत में उल्लेखनीय सुधार देखा गया। शोरयुक्त सांस और सांस फूलने की समस्या में काफी कमी आई, भोजन करने की क्षमता बेहतर हुई और वजन भी स्वस्थ तरीके से बढ़ने लगा, जो इलाज के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
डॉ. खोसला ने आगे कहा, “शिशुओं में बार-बार स्ट्राइडर, भोजन में कठिनाई या वजन न बढ़ना जैसी समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए और समय पर विशेषज्ञ से जांच करानी चाहिए। फ्लेक्सिबल ब्रोंकोस्कोपी जैसी जांच सही कारण का पता लगाने में मदद करती है। एयरवे हीमांजियोमा भले ही दुर्लभ हों, लेकिन समय पर पहचान और दवा शुरू होने पर इनका सफल इलाज संभव है, जिससे शिशु के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।”
डॉ. जुबिन परेरा, फैसिलिटी डायरेक्टर, नारायणा हेल्थ एसआरसीसी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, मुंबई ने कहा, “जन्म से मौजूद लगातार शोरयुक्त सांस को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। यह मामला दर्शाता है कि हमारे अस्पताल में उपलब्ध ब्रोंकोस्कोपी जैसी उन्नत जांच सुविधाएं बच्चों को समय पर विशेषज्ञ उपचार उपलब्ध कराने में कैसे मदद करती हैं, जिससे बार-बार अस्पताल में भर्ती होने और दीर्घकालिक जटिलताओं से बचाव हो सकता है।”