दिव्यराष्ट्र:/ आज का संसार अत्यंत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। तनाव, टकराव और अनिश्चितता हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे समय में ध्यान कोई विलास या केवल आध्यात्मिक जिज्ञासा नहीं रह गया है—यह जीवन की एक अत्यंत आवश्यक आवश्यकता बन गया है। बहुत कम आध्यात्मिक गुरुओं ने ध्यान के विज्ञान और उसकी गहराई को इतनी स्पष्टता और वैश्विक दृष्टि से समझाया है, जैसे श्री श्री परमहंस योगानंद ने—वे महान योगी जिन्होंने क्रिया योग की प्राचीन विधि को संसार के सामने प्रस्तुत किया।
योगानंद जी 1920 में अमेरिका पहुँचे और तीन दशकों से अधिक समय तक यह शिक्षा देते रहे कि स्थायी शांति और खुशी धन-संपत्ति, पद या बाहरी सफलता में नहीं मिल सकती। यह तो भीतर की ओर मुड़कर, ध्यान के माध्यम से मन को शांत करने से ही उत्पन्न होती है। उनकी उत्कृष्ट कृति एक योगी की आत्मकथा ने लाखों लोगों—विश्व नेताओं, वैज्ञानिकों, कलाकारों और उद्योगपतियों—को प्रेरित किया है और आज भी यह संसार की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक है।
अपनी शिक्षाओं को संरक्षित करने और फैलाने के लिए उन्होंने दो संस्थाओं की स्थापना की: पश्चिम में सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (सर्फेस) और भारत में योगोदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया । दोनों संस्थाएँ आज भी संसार भर के साधकों के लिए ध्यान तकनीकें, पाठ्यक्रम, रिट्रीट्स और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान कर रही हैं। इन शिक्षाओं का केंद्र क्रिया योग है—एक वैज्ञानिक ध्यान विधि, जो नाड़ी तंत्र को शांत करके, जीवन-ऊर्जा को उच्च चेतना की ओर मोड़ते हुए आध्यात्मिक विकास को तीव्र करती है। इच्छुक लोगों के लिए सर्फ/यस आश्रमों में ध्यान के पाठ उपलब्ध हैं।
योगानंद जी के अनुसार ध्यान एक वैज्ञानिक विधि है, जिसके माध्यम से आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। दूसरे शब्दों में, ध्यान परमात्मा को जानने के लिए प्रयुक्त एकाग्रता है। यह प्रयास आंतरिक अनुभव के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है। जब ध्यान में प्रेम, शांति, निर्विकारता या आनंद उत्पन्न होता है, तो यह परमात्मा का आत्मा को स्पर्श करना होता है—क्योंकि वे आंतरिक निश्चलता की अवस्थाओं में प्रकट होते हैं। परमात्मा का मूल स्वरूप ध्यान में “सदैव नया आनंद” के रूप में अनुभव किया जा सकता है।
योगानंद जी ने कहा था, “यदि आप प्रतिदिन गहराई और निरंतरता के साथ ध्यान का अभ्यास करेंगे, तो आप उस सदा-विद्यमान, सदा-सचेत, सदा-नए आनंद को अपने भीतर बढ़ता हुआ महसूस करेंगे। और अभ्यास के साथ, यह आनंद व्यवहार में भी और मौन में भी आपके साथ रहेगा।” क्या हम सभी इसी सदा-नए आनंद की खोज नहीं कर रहे?
इसी कारण योगानंद जी की शिक्षाएँ आज के समय में विशेष रूप से प्रासंगिक लगती हैं। जब वैश्विक स्तर पर तनाव, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ और सूचना का अति-भार सामान्य हो चुका है, तब उनका संदेश यह याद दिलाता है कि समाधान बाहर नहीं—अंदर है। ध्यान केवल संन्यासियों या सूफियों के लिए नहीं, बल्कि हर एक के लिए संतुलन, एकाग्रता और आनंद को पुनः स्थापित करने का एक वैज्ञानिक मार्ग है, चाहे हम जैसे भी बाहरी हालात से गुजर रहे हों।
आज जब संसार विश्व ध्यान दिवस मनाते हुए आंतरिक निश्चलता की सार्वभौमिक आवश्यकता पर विचार कर रहा है, तब योगानंद जी की आवाज़ और भी अधिक प्रासंगिक होकर गूंजती है, क्योंकि उन्होंने केवल तनाव से मुक्ति ही नहीं, बल्कि दिव्यता से संपर्क के माध्यम से स्थायी आंतरिक शांति और आनंद तक पहुँचने की एक स्पष्ट, वैज्ञानिक ध्यान विधि प्रदान की। शोर और विभाजन के इस युग में, उनकी शिक्षाएँ एक शांत, अडोल प्रकाश-स्तंभ की तरह खड़ी हैं। वे हमें उस निश्चलता की ओर वापस बुलाती हैं, जिसे हम भूल चुके हैं—शांति और आनंद के भीतर स्थित पवित्र आश्रय की ओर।