
जयपुर, दिव्यराष्ट्र:/ पीपल स्पेशलिस्ट द्वारा आयोजित “विकसित भारत 2047 सम्मेलन” तथा “छठे पीपल स्पेशलिस्ट उत्कर्ष सम्मान–2025” का सफल आयोजन 29 नवंबर 2025 को होटल फर्न इन, जयपुर में हुआ, जिसमें शिक्षाविदों, नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों ने व्यापक सहभागिता निभाई। कार्यक्रम की थीम “विकसित भारत 2047 में शिक्षकों की भूमिका” रही, जिसके माध्यम से भारत के अमृतकाल (2023–2047) में शिक्षण समुदाय की महत्त्वपूर्ण भूमिका, युवा सशक्तिकरण और राष्ट्रीय विकास पर व्यापक विमर्श प्रस्तुत किया गया।
पीपल स्पेशलिस्ट के निदेशक डॉ. अंकित गांधी ने सम्मेलन का अवधारणा-नोट प्रस्तुत करते हुए बताया कि अमृतकाल भारत के लिए निर्णायक 25 वर्ष हैं, जिनमें देश की युवा आबादी—जो भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या है—राष्ट्र की सबसे बड़ी सामर्थ्य के रूप में उभर सकती है, बशर्ते उन्हें सही शिक्षा, कौशल और मूल्य-आधारित मार्गदर्शन मिले। उन्होंने कहा कि भारत आज विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक तीसरी तथा 2047 तक दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है।
सम्मेलन में शोध-पत्र प्रस्तुति सत्र प्रारम्भ हुआ, जहाँ मारिया व्हाइट ने “एआई-सहायतित भविष्य के लिए मौलिक सृजनात्मकता” विषय पर प्रस्तुति दी और बताया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता मनुष्य की सोच, सीखने की शैली और आत्म-पहचान को निरंतर परिवर्तित कर रही है, ऐसे समय में किशोरों में सचेत नेतृत्व, गहरी अंतर्दृष्टि और रचनात्मकता विकसित करना अनिवार्य हो गया है। लवीता विग ने ध्यान–क्वांटम मानचित्रण पर अपने शोध में बताया कि ध्यान के विभिन्न चरणों को क्वांटम प्रक्रियाओं—विक्षोभ, अवसशीकरण, पुन:सुसंगति, अवस्था-चयन और पुनर्संलयन—से वैज्ञानिक रूप से जोड़ा जा सकता है, जो भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का वैज्ञानिक पुनर्पाठ है। इसके पश्चात शिल्पा सुगतन ने नियंत्रित श्वास-प्रक्रिया एवं भावनात्मक स्थिरता पर शोध प्रस्तुत करते हुए कहा कि श्वास शरीर और मन के बीच सेतु है तथा भावनात्मक संतुलन अंततः श्वास संतुलन का ही परिणाम है। सेंडिल कुमार ने अपने शोध में क्वांटम सिद्धांतों के प्रयोग से एक गाँव के सामाजिक परिवर्तन का उल्लेखनीय अध्ययन प्रस्तुत किया, जहाँ हिंसा, अव्यवस्था और नशे की प्रवृत्ति वाले समुदाय में शांति, अनुशासन, एकता और नशामुक्ति जैसे सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले। रश्मि चनानी ने डिजिटल डिटॉक्स व्यवहार पर प्रस्तुत शोध में मानसिक स्वास्थ्य, आत्म-नियमन, सामाजिक दबाव और तकनीकी थकान को डिजिटल डिटॉक्स के प्रमुख प्रेरक तत्व बताया। ऑनलाइन सत्र में उमेश कुमार ने कॉलेज विद्यार्थियों में सामाजिक मीडिया उपयोग पर अध्ययन प्रस्तुत किया; कुलदीप बहुगुणा ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित विधिक परिवर्तन पर शोध प्रस्तुत किया; स्वप्निल निकम ने तापीय ऊर्जा संचय हेतु चरण-परिवर्तन सामग्री पर समीक्षा अध्ययन प्रस्तुत किया; तथा तन्वी गडगी ने व्याख्यात्मक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित मस्तिष्क ट्यूमर पहचान प्रणाली पर शोध प्रस्तुत किया।
अतिथियों के उद्बोधन में प्रहलाद राय ताख ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति ही उसे वैश्विक पहचान देती है और “असफलता नहीं, निम्न लक्ष्य रखना ही अपराध है” जैसे प्रेरक कथन के माध्यम से युवाओं को उच्च लक्ष्य निर्धारित करने का संदेश दिया। एच. सी. गनेशिया ने विधि, साहित्य, शासन और भारतीय चिंतन पर आधारित अपने संबोधन में भारतीय ज्ञान-परंपरा की महत्ता रेखांकित की।
एपेक्स विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमदेव शतांशु ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत के विकसित राष्ट्र बनने की यात्रा में शिक्षक समुदाय ही वास्तविक परिवर्तनकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि भारत का युवा वर्ग अपार संभावनाओं से भरा है, पर इन संभावनाओं को दिशा देने का उत्तरदायित्व शिक्षकों और विश्वविद्यालयों को ही निभाना होगा।
मुख्य अतिथि आईपीएस पंकज चौधरी ने अपने संबोधन में कहा कि यदि युवाओं को स्वास्थ्य, कौशल और सदाचार के अनुरूप दिशा नहीं मिली तो भारत अमृतकाल का अवसर खो सकता है, पर यदि शिक्षकों के नेतृत्व में यह दिशा प्रदान की गई तो भारत का भविष्य असीम संभावनाओं से परिपूर्ण होगा।
इसके पश्चात छठे “पीपल स्पेशलिस्ट उत्कर्ष सम्मान” का आयोजन हुआ, जिसमें डॉ. एम. के. प्रभाकर कनास्कर, डॉ. टीना कटारिया, सौरभ शर्मा, लवीता विग और मंजू खली रमन को विविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान हेतु सम्मानित किया गया। इसी क्रम में डॉ. वेलेंटिना, प्रो. ए. के. सिंह सहित अनेक शिक्षाविदों का भी विशेष सम्मान किया गया।
समापन सत्र में डॉ. अंकित गांधी ने सभी अतिथियों, शोध-पत्र प्रस्तुतकर्ताओं, प्रतिभागियों, ऑनलाइन वक्ताओं तथा आयोजन टीम—विशेषकर राहुल विजय और श्वेता—का हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए घोषणा की कि “विकसित भारत 2047 सम्मेलन” प्रतिवर्ष आयोजित किया जाएगा।
