परंपरा, पर्यावरण और जनभावनाओं के बीच संतुलन
(दिव्यराष्ट्र के लिए रेणु जुनेजा*)
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में इस वर्ष दीपावली के अवसर पर 18 से 20 अक्टूबर तक ग्रीन पटाखे चलाने की सशर्त अनुमति दी है। साथ ही, इन पटाखों के उपयोग का समय भी तय किया गया है — सुबह 6 से 7 बजे और रात 8 से 10 बजे तक। यह निर्णय एक प्रकार से परंपरा और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के बीच संतुलन साधने का प्रयास है।
पाबंदियों की पृष्ठभूमि
पिछले कुछ वर्षों से दीपावली के दौरान देश के कई राज्यों, विशेषकर दिल्ली-एनसीआर में, वायु और ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए पटाखों पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध लगाया गया था। दरअसल, अक्टूबर-नवंबर के महीनों में राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर पहले से ही खतरनाक सीमा तक पहुँच जाता है, ऐसे में पटाखों से निकला धुआँ वातावरण को और अधिक विषैला बना देता है।
ग्रीन पटाखों की अवधारणा
इस परिप्रेक्ष्य में ग्रीन पटाखे एक नई पहल हैं। भारतीय राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने ऐसे पटाखे विकसित किए हैं जो सामान्य पटाखों की तुलना में लगभग 30% तक कम प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें भारी धातुओं (लीड, एल्युमिनियम, बेरियम आदि) का उपयोग सीमित या नियंत्रित होता है और इन्हें ऐसे रासायनिक संयोजन से बनाया जाता है जो ध्वनि और धुएँ दोनों के स्तर को घटाता है।
उद्योग के लिए राहत
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पटाखा निर्माताओं के लिए एक राहत की तरह है। बीते कुछ वर्षों में लगातार प्रतिबंधों के चलते यह उद्योग संकट से जूझ रहा था। लाखों लोगों की आजीविका इस कारोबार से जुड़ी है — सिवाकासी जैसे केंद्रों में छोटे कारीगरों से लेकर सप्लायर्स और विक्रेताओं तक सभी प्रभावित हुए थे। अब ग्रीन पटाखों के माध्यम से उद्योग को कानूनी और पर्यावरणीय दोनों स्तरों पर पुनर्जीवन मिलने की संभावना है।
जन भावनाएँ और सांस्कृतिक पक्ष
भारत में दीपावली केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव है। दीयों, मिठाइयों और रोशनी के साथ पटाखे इस त्योहार की रौनक का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में जब पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था, तब जन भावनाओं में असंतोष झलकने लगा था। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इन भावनाओं का भी सम्मान करता है, बशर्ते इसका पालन संयम और जिम्मेदारी के साथ किया जाए।
पर्यावरणीय चेतना और भविष्य की दिशा
सवाल यह नहीं है कि पटाखे चलें या नहीं — सवाल यह है कि कितनी जिम्मेदारी के साथ चलें। दीपावली की खुशी प्रकृति की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। आने वाले वर्षों में आवश्यकता इस बात की है कि ग्रीन टेक्नोलॉजी को और उन्नत बनाया जाए, ताकि न केवल ग्रीन पटाखे बल्कि अन्य उत्सव-सामग्री भी पर्यावरण अनुकूल हो सके।
सरकार को भी इसके लिए प्रमाणीकरण प्रणाली और कड़े निगरानी तंत्र विकसित करने चाहिए ताकि बाजार में केवल स्वीकृत ग्रीन पटाखे ही उपलब्ध हों। स्कूलों और मीडिया के माध्यम से जनता में पर्यावरणीय चेतना को गहराई से पहुँचाया जा सकता है।
दीपावली का सार है , अंधकार पर प्रकाश की विजय। यह प्रकाश केवल दीयों का नहीं, हमारे विचारों और जिम्मेदारियों का भी होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई सीमित छूट हमें यह याद दिलाती है कि परंपरा निभाना भी जरूरी है और प्रकृति की रक्षा करना भी। यदि दोनों का संतुलन बनाए रखा जाए, तो यह निर्णय पर्यावरण और संस्कृति दोनों के लिए शुभ साबित होगा।