जयपुर, दिव्यराष्ट्र / सर्दियों का मौसम आते ही वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ जाता है। धुंध, ठंड और धीमी हवा के कारण प्रदूषित हवा लंबे समय तक बनी रहती है। खासकर दिल्ली व जयपुर जैसे महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों में यह समस्या और ज्यादा गंभीर हो जाती है। दिल्ली का एक्यूआई लगभग 250 से 350 तक बना रहता है, जो बेहद ही खराब माना जाता है। उसके मुकाबले जयपुर का एक्यूआई काफी काम है | प्रदूषण के इस बढ़ते स्तर का सबसे ज्यादा असर अस्थमा के मरीजों और सांस से जुड़ी अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों पर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में हर 250 में से 1 मौत अस्थमा के कारण होती है। ठंड में सांस लेना मुश्किल हो सकता है और अस्थमा के अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। आइए डॉ. शिवानी स्वामी, सीनियर कंसल्टेंट – पल्मोनोलॉजी, नारायणा हॉस्पिटल, जयपुर से समझते हैं कि ठंड में प्रदूषण बढ़ने के क्या कारण हैं, इससे किस तरह के नुकसान हो सकते हैं और अस्थमा के मरीजों को बचाव के लिए क्या करना चाहिए।
सर्दियों में प्रदूषण के बढ़ने के कारण*
ठंड के समय हवा में धुएं और धूल के कण जमा हो जाते हैं, जिन्हें स्मॉग कहा जाता है। यह स्मॉग सांस लेने में परेशानी पैदा करता है। दूसरी तरफ कई इलाकों में पराली जलाने से भी निकलने वाला धुआं हवा में मिल जाता है, जिससे वायु की गुणवत्ता और खराब हो जाती है। सर्दियों में हवा भी धीमी चलती है, जिससे प्रदूषित कण हवा में लंबे समय तक टिके रहते हैं। वाहनों का अधिक उपयोग और लकड़ी या कोयला जलाने से भी ठंड में प्रदूषण काफी बढ़ जाता है। ऐसे में ठंड के दौरान इस बढ़ते प्रदूषण के कारण अस्थमा और सांस से संबंधित अन्य बीमारियों से ग्रसित व्यक्तियों में परेशानी बढ़ सकती है।
प्रदूषण और अस्थमा मरीजों पर इसका असर*
सर्दियों में प्रदूषित हवा में सांस लेना अस्थमा मरीजों के लिए खतरनाक हो सकता है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे छोटे कण, धूल, धुआं और जहरीली गैसें अस्थमा को गंभीर बना सकती हैं। यह फेफड़ों में जलन पैदा कर सकती हैं और श्वसन तंत्र को कमजोर कर सकती हैं। सर्दियों के मौसम में ठंडी-सूखी हवा और प्रदूषण फेफड़ों के लिए काफी नुकसानदायक हो सकती है। जब अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति ठंडी हवा में सांस लेते हैं, तो उनके वायुमार्ग सिकुड़ जाते हैं और यह अस्थमा के अटैक को ट्रिगर कर सकता है। सर्दियों में फ्लू, सर्दी-खांसी और अन्य श्वसन संक्रमण भी तेजी से फैलते हैं। ये संक्रमण अस्थमा को और खराब कर सकते हैं। ठंड से बचने के लिए अक्सर लोग खिड़कियां-दरवाजे बंद रखते हैं, जिससे घर के अंदर की हवा दूषित हो जाती है। धूल, पालतू जानवरों क़े बाल, और धूम्रपान जैसी चीजें भी अस्थमा को ट्रिगर कर सकती हैं। प्रदूषण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर कर देता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। बच्चों और बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, इसलिए वे इस समय प्रदूषण से जल्दी प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे में प्रदूषण अस्थमा अटैक को औऱ बढ़ा सकता है, जिससे मरीज की स्थिति गंभीर हो सकती है। इसलिए ऐसे मौसम में आपको बाहरी प्रदूषण से बचना बहुत जरूरी होता है, नहीं तो फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना भी उत्पन्न हो सकती है। क्योंकि वायु प्रदूषण में मौजूद हानिकारक गैसें और कण फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं।
सर्दियों में प्रदूषण और अस्थमा से बचाव के उपाय*
सर्दियों के मौसम में अस्थमा मरीजों और अन्य लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। यहां कुछ आसान उपाय बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप खुद को सुरक्षित रख सकते हैं। सबसे पहले जब भी आप बाहर जाएं, एन95 मास्क पहनें। यह प्रदूषण के छोटे-छोटे कणों को अंदर जाने से रोकता है। ठंडी हवा से बचने क़े लिए हमेशा गर्म कपड़े पहने। ठंड के मौसम में ज़ब जरूरी हो तो ही बाहर निकलें खास कर सुबह और शाम के समय प्रदूषण का स्तर अधिक होता है। इस दौरान बाहर निकलने से बचें। घर के अंदर की हवा साफ रखने के लिए एयर प्यूरीफायर लगाएं। बाहर प्रदूषण अधिक हो तो खुले में व्यायाम न करें। सांस के साथ प्रदूषित हवा ज्यादा अंदर जाती है, जिससे फेफड़ों पर दबाव बढ़ सकता है। ठंड के दौरान गुनगुना पानी पीने से गले और श्वसन तंत्र को राहत मिलती है। अगर आप लकड़ी या कोयला जलाते हैं, तो यह घर के अंदर प्रदूषण बढ़ा सकता है। इससे बचने की कोशिश करें। अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने के लिए ताजे फल, सब्जियां और विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थ खाएं। अगर अस्थमा के लक्षण बढ़ें, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। इन्हेलर और दवाइयां हमेशा अपने पास रखें।