अहमदाबाद, दिव्यराष्ट्र*, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के 100वें राष्ट्रीय सम्मेलन (नैटकोन 2025) में देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञों ने आहार वसा (डायटरी फैट्स) और हृदय स्वास्थ्य के पारस्परिक संबंधों पर विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता जताई। विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया कि बदलते वैज्ञानिक शोध के परिप्रेक्ष्य में पुरानी धारणाओं का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य है। Iआईएमए नैटकोन के इस शताब्दी सत्र में देशभर के हजारों चिकित्सकों और शोधकर्ताओं ने सहभागिता की, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य की दिशा निर्धारित करने वाले एक प्रमुख मंच के रूप में इसकी भूमिका फिर से मजबूत हुई है।
इस सम्मेलन में डॉ. वरुण बंसल और डॉ. केतन मेहता के विशेषज्ञ सत्रों ने उन विषयों पर चिकित्सकीय स्पष्टता प्रदान की, जिन्हें लेकर अक्सर भ्रांतियाँ बनी रहती हैं। वैश्विक शोध और क्लिनिकल साक्ष्यों के आधार पर इन सत्रों में आहार वसा, पाम ऑयल और हृदय संबंधी रोगों (कार्डियोमेटाबॉलिक) के उपचारों का गहन विश्लेषण किया गया।
“एथेरोस्क्लेरोसिस, सैचुरेटेड फैट और पाम ऑयल: क्या वास्तव में इनका परस्पर संबंध है?” विषय पर अपनी प्रस्तुति में डॉ. बंसल ने उन उन मान्यताओं पर प्रश्न उठाए जो सैचुरेटेड फैट को सीधे तौर पर हृदय रोगों का कारक मानती थीं। बहु-देशीय अध्ययनों का संदर्भ देते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी सैचुरेटेड फैट पोषण की दृष्टि से एक समान नहीं होते। हृदय रोगों का जोखिम केवल किसी एक तत्व पर नहीं, बल्कि व्यक्ति की आहार पद्धति, जीवनशैली और कुल कैलोरी सेवन पर निर्भर करता है।
उन्होंने यह भी बताया कि वसा के कुछ विकल्पों से कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम हो सकता है, किंतु वे हृदय संबंधी मृत्यु दर को कम करने में सदैव प्रभावी नहीं रहे हैं। इसके विपरीत, ‘ट्रांस फैट’ की तुलना में पाम ऑयल के परिणाम कहीं अधिक सकारात्मक पाए गए हैं। डॉ. बंसल का यह सत्र विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर-एनआईएन के उन दिशा-निर्देशों के अनुरूप रहा जो संतुलित आहार, विविध खाद्य तेलों के प्रयोग और इसके संयमित उपभोग पर बल देते हैं।
डॉ. वरुण बंसल ने कहा, “पोषण विज्ञान को मात्र सरल लेबलों या सीमित परिभाषाओं में नहीं समेटा जा सकता। वर्तमान में डर से किसी खाद्य पदार्थ को छोड़ने के बजाय संतुलित आहार, विविधता और तथ्यों पर आधारित चुनाव करना अधिक महत्वपूर्ण है।”
इसी विमर्श को आगे बढ़ाते हुएडॉ. मेहता ने “कार्डियोमेटाबोलिक सिंड्रोम में पाम टोकोट्रिएनोल्स की भूमिका”पर अपनी शोधपरक प्रस्तुति दी। उन्होंने भारत में मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप और डिस्लिपिडेमिया के बढ़ते संकट की ओर संकेत किया। उन्होंने रेड पाम ऑयल में मौजूद विटामिन-ई के विशिष्ट स्वरूप, ‘टोकोट्रिएनोल्स’ पर प्रकाश डालते हुए इनके एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी और हृदय-संरक्षी (कार्डियोप्रोटेक्टिव) गुणों के साक्ष्य प्रस्तुत किए। डॉ. मेहता ने पाम-आधारित टोकोट्रिएनोल्स की सुरक्षित छवि का उल्लेख करते हुए बताया कि इन्हें यूएस एफडीए द्वारा’जीआरएएस’ की मान्यता प्राप्त है। उन्होंने जोर दिया कि जीवनशैली में सुधार और उपचार के साथ-साथ ये विज्ञान-सम्मत सहायक विकल्प के रूप में प्रभावी साबित हो सकते हैं।