छतरपुर, दिव्यराष्ट्र:/ बुंदेलखंड की मिट्टी में सिर्फ मेहनत की खुशबू ही नहीं, बल्कि लोकगीतों की अमर धड़कन भी बसती है। वही धड़कन, वही सुर और वही अपनापन अब एक बार फिर सम्पूर्ण बुंदेलखंड में गूँजने जा रहा है। बुंदेलखंड क्षेत्र के प्रसिद्ध चैनल, बुंदेलखंड 24×7 ने बुंदेली लोकगीतों को नई पीढ़ी तक पहुँचाने और लोक कलाकारों को पहचान दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। चैनल ‘बुंदेली बावरा’ नाम से एक अनोखा म्यूज़िकल रियलिटी शो लेकर आ आया है, जो बुंदेली लोकगीतों को समर्पित बुंदेलखंड की पहली बड़ी लोकगीत प्रतियोगिता है। बुंदेली लोकसंस्कृति को जीवित रखने के उद्देश्य से चल रही इस प्रतियोगिता के जरिए क्षेत्र के कुछ चुनिंदा लोकगीत कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाने का मौका मिलेगा। प्रतियोगिता की शुरुआत चंदेरी स्थित बैजू बावरा जी की समाधि पर माल्यार्पण से हुई।
यह प्रतियोगिता सिर्फ गायन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह उस परंपरा, संवेदना और सांस्कृतिक विरासत की आवाज़ है, जिसे सालों से लोक कलाकार अपने सुरों में जीवित रखते आए हैं। इस शो को बुंदेली लोकगीतों के महान कलाकार बैजू बावरा की स्मृति में आयोजित किया जा रहा है, ताकि उनकी साधना, तपस्या और सुरों के प्रति समर्पण को नई पीढ़ी तक सहेजा जा सके।
इस अनूठी पहल को लेकर बुंदेलखंड 24×7 के फाउंडर, अतुल मलिकराम ने कहा, “बैजू बावरा सिर्फ एक लोकगायक नहीं थे, वे बुंदेलखंड की आत्मा की आवाज़ थे। उनके सुरों में हमारी परंपराएँ साँस लेती थीं, जिन्हें जीवित रखना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने लोकगीतों को मनोरंजन नहीं, बल्कि साधना बनाया। ‘बुंदेली बावरा’ प्रतियोगिता उनके उसी समर्पण को नमन है। हमारा उद्देश्य है कि आज का युवा अपनी मिट्टी की उस अनमोल संगीत विरासत को जाने, समझे और उस पर गर्व करे। यह मंच बैजू बावरा के सुरों को श्रद्धांजलि है और आने वाली पीढ़ियों के लिए बुंदेलखंड की इस अद्वितीय संस्कृति और अनूठी विरासत को सजेहने की महत्वपूर्ण कड़ी है। यह शो अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भाव है।”
वहीं, शो के बारे में जानकारी देते हुए बुंदेलखंड 24×7 के चैनल हेड, आसिफ पटेल ने कहा, “बुंदेली शेफ जैसे सफल शो के बाद अब बुंदेली बावरा के माध्यम से हम बुंदेलखंड की संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने जा रहे हैं। लोकगीतों में हमारे इतिहास, संघर्ष और प्रेम की कहानियाँ छिपी हैं। हमारा प्रयास है कि इन सुरों को सम्मान मिले और लोक कलाकारों को वह मंच मिले, जिसके वे सच्चे हकदार हैं। बड़ी संख्या में हुए रजिस्ट्रेशन्स इस बात का उदाहरण हैं कि लोकगीत आज भी लोगों की रगों में बसते हैं। यह मंच बुंदेली कलाकारों को पहचान देकर पूरे देश तक बुंदेली आवाज़ पहुँचाएगा।”
‘बुंदेली बावरा’ का उद्देश्य स्पष्ट है- बुंदेलखंड के गाँव-गाँव, कस्बे-कस्बे में छिपे उन सुरों को सामने लाना, जिन्हें मंच और पहचान की जरूरत है। यही वजह रही कि इसके पहले चरण में जब ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू किए गए, तो बुंदेलखंड ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों से भी जबरदस्त उत्साह देखने को मिला। इस दौरान 500 से अधिक वीडियो एंट्रीज़ प्राप्त हुईं, जिनमें लोकगीतों की सादगी, दर्द, प्रेम और मिट्टी की खुशबू साफ झलकती नजर आई।
अब यह प्रतियोगिता ज़मीनी स्तर पर पहुँच रही है। चयनित प्रतिभागियों के लिए ऑडिशन राउंड आयोजित किए जा रहे हैं, जो पूरे बुंदेलखंड को जोड़ते हुए अलग-अलग जिलों में होंगे। ऑडिशन की जानकारी इस प्रकार है:
11 दिसंबर, 2025 को झाँसी में ऑडिशन हुए, जिनमें झाँसी समेत दतिया और निवारी के कलाकार शामिल रहे।
12 दिसंबर, 2025 को हमीरपुर में ऑडिशन हुए, जिसमें महोबा, बाँदा और जालौन के प्रतिभागियों ने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा।
13 दिसंबर, 2025 को छतरपुर में ऑडिशन हैं, जहाँ चित्रकूट से आए लोकगायक भी अपनी प्रस्तुति देंगे।
15 दिसंबर, 2025 को पन्ना में ऑडिशन राउंड रखा गया है।
17 दिसंबर, 2025 को टीकमगढ़ में ऑडिशन होंगे, जिनमें ललितपुर के कलाकार भी शामिल होंगे।
18 दिसंबर, 2025 को सागर में अंतिम ऑडिशन आयोजित किया जाएगा, जिसमें दमोह के प्रतिभागी भी अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करेंगे।
हर क्षेत्र से चुने गए सर्वश्रेष्ठ और प्रभावशाली लोकगीत वीडियो और प्रस्तुतियों का चयन आगे क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल और ग्रैंड फिनाले के लिए किया जाएगा। हर चरण में कलाकारों के सुर, भाव, बुंदेली शब्दों की पकड़ और लोकपरंपरा से जुड़ेपन को विशेष महत्व दिया जाएगा।
पृथक बुंदेलखंड की अलख जगाए बुंदेलखंड 24×7 पिछले कई वर्षों से सिर्फ एक डिजिटल चैनल नहीं, बल्कि बुंदेलखंड की बुलंद आवाज़ बनकर लगातार उभर रहा है। सामाजिक सरोकारों से लेकर सांस्कृतिक अभियानों, जनआंदोलनों और पृथक राज्य की मुहिम तक, चैनल ने हमेशा ज़मीनी मुद्दों को प्राथमिकता दी है। ‘बुंदेली बावरा’ उसी सोच का अगला कदम है, जहाँ लोक कलाकारों को सम्मान, मंच और भविष्य मिल सके।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि ‘बुंदेली बावरा’ सिर्फ सुरों की प्रतियोगिता नहीं होगी, बल्कि यह बुंदेलखंड की आत्मा, उसकी संस्कृति और उसकी पहचान का उत्सव बनेगा। आने वाले दिनों में जब लोकगीतों की गूँज मंच से उठेगी, तो पूरा बुंदेलखंड गर्व से कहेगा- हाँ, ये बुलंद आवाज़ें बुंदेलखंड की हैं।