
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की पूर्व अतिरिक्त निदेशक अलका सक्सेना की बत्तीस वर्ष से अधिक की जनसम्पर्क यात्रा पर लिखित पुस्तक अब जब बात निकली है केवल कहानी मात्र नहीं है अपितु लेखक की सेवा यात्रा, संघर्ष और उपलब्धियों का दस्तावेज भी है। अपनी बात बेबाकी से रखने का साहस हर किसी के बस की बात नहीं होती, मगर अलका ने इसे कर दिखाया है। प्रस्तुत पुस्तक में अलका ने सच को सच कहने की हिम्मत दिखाते हुए एक ऐसी कृति हमारे हाथों में दी है जो जनसंपर्क कर्मियों की नई पीढ़ी को ही नहीं बल्कि हम सब को भी जीने की राह दिखाएगी। जनसंपर्क पर सैद्धांतिक ज्ञान की बेशक अनेक किताबें पहले से उपलब्ध हैं पर जमीनी हकीकत बताने वाली और व्यवहारिक ज्ञान देने वाली यह किताब अपने आप में अनूठी साबित होगी। अलका ने बिना किसी लाग लपेट और बिना चाशनी लपेटे सब कुछ कितना खुल कर लिखा है। पुस्तक में अलका हमें अपने साथ अपनी पूरी राजकीय सेवा की यात्रा पर ले जाती हैं और जहाँ मिले अपने खट्टे मीठे, अच्छे बुरे, अनुकूल प्रतिकूल सारे अनुभव क्रम दर क्रम हमसे साझा करती जाती हैं। उन्होंने अपनी इस पूरी यात्रा का बेहद संजीदगी से और सयंमित भाषा में वर्णन किया है। अपनी किताब में वे बिना किसी झिझक और डर के राजकीय व्यवस्था के प्रति अपना गुस्सा भी जाहिर करती हैं। भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध ज़ीरो टोलरेंस और महिला सशक्तिकरण का राग अलापने वाली सरकारों के प्रति भी उनके मन में जो आक्रोश उसे भी यहाँ लिखने से वे अपने आप को रोक नहीं पातीं।
यह किताब जनसम्पर्क का एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें जनसम्पर्क क्या है, क्यों जरूरी है ,कितने प्रकार का है, इसके क्या उपकरण हैं, इस क्षेत्र में काम करने वालों के लिए आने वाली चुनौतियां तथा समस्याएं और उनके निराकरण के लिए निकाले गए रास्ते, विधान सभा कवरेज ,जनादेश ,जनसम्पर्क और जमीनी हकीकत ,सत्ता परिवर्तन और जनसम्पर्क ,जनसंपर्क के क्षेत्र में महिलाओं के लिए चुनौतियां, जनसंपर्क अधिकारी की गिरती साख जैसे अनेक बिंदुओं को समेटने की कोशिश की गयी है।
लेखक ने पुस्तक में अपने पूरे जनसम्पर्क सफर की यादों को गागर में सागर की तरह भरने का सफल प्रयास किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वे हर दृष्टि से विलक्षण प्रतिभा की धनी हैं। वे उच्च कोटि की जनसम्पर्क कर्मी, संपादक, पत्रकार और प्रतिष्ठित संवादकर्मी के साथ हिंदी और अंग्रेजी की ज्ञाता हैं। निडरता, साहस, कार्य के प्रति समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा उनकी प्रमुख विशेषता है। आशा है यह पुस्तक सुधि पाठकों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी।
*लेखक : अलका सक्सेना
प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर ।
पृष्ठ : 315
मूल्य : 500 रूपये
समीक्षक — वीना करमचंदानी
वरिष्ठ लेखक और जनसम्पर्ककर्मी**




