नई दिल्ली,, दिव्यराष्ट्र*अक्टूबर के अंत से दिसंबर की शुरुआत तक, देश के कई हिस्सों में वायु गुणवत्ता आमतौर पर “मध्यम” से “गंभीर” स्तर तक गिर जाती है। इसके पीछे प्रमुख कारण पराली जलाना, त्योहारी आतिशबाज़ी और स्थिर सर्दियों की हवा हैं। इस तरह के प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों के अलावा शरीर के कई अन्य अंग तंत्र प्रभावित होते हैं, जिससे श्वसन, हृदय संबंधी और त्वचा से जुड़ी बीमारियों में बढ़ोतरी देखी जाती है।
इस बढ़ती चिंता पर विचार व्यक्त करते हुए रिलायंस जनरल इंश्योरेंस के सीईओ राकेश जैन ने कहा, “भारत के कई क्षेत्रों में बिगड़ती वायु गुणवत्ता अब केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह एक बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति है। बढ़ते प्रदूषण स्तर श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों में सीधे तौर पर वृद्धि का कारण बन रहे हैं, जिससे उपचार चक्र लंबा हो रहा है और परिवारों के लिए स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ रही है। इस संदर्भ में, स्वास्थ्य बीमा को एक विवेकाधीन खर्च के रूप में नहीं, बल्कि एक बुनियादी घरेलू आवश्यकता के रूप में देखा जाना चाहिए। यह गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल तक समय पर पहुँच सुनिश्चित करता है और परिवारों को अप्रत्याशित स्वास्थ्य स्थितियों के वित्तीय प्रभाव से बचाता है।”