कोलकात्ता, दिव्यराष्ट्र*: लगातार दो असफलताओं के बाद मिली यह जीत कर्णा घोष की अटूट हिम्मत और मेहनत की कहानी है। पश्चिम बंगाल के इस युवा नर्सिंग ग्रेजुएट ने जब नॉर्सेट 7 और 8 की प्रारंभिक परीक्षाएँ पास नहीं कीं, तो कई लोगों ने कहा कि अब यह सपना शायद पूरा न हो सके। लेकिन कर्णा ने हार नहीं मानी और अब उन्होंने नॉर्सेट 9 पास कर ₹12 लाख सालाना की सेंट्रल गवर्नमेंट नर्सिंग ऑफिसर की नौकरी हासिल कर ली है।
कर्णा का सफर तभी बदला जब उन्होंने समझा कि सिर्फ मेहनत काफी नहीं — रणनीति जरूरी है। उन्होंने रटने से हटकर कांसेप्ट-बेस्ड पढ़ाई पर ध्यान दिया, और इसी दौरान उन्हें मिला एनप्रेप नर्सिंग क्लासेज जिसने उनकी तैयारी की दिशा ही बदल दी।
जब एनप्रेप ने देशभर के छात्रों के लिए अपनी मुफ्त ऑल इंडिया टेस्ट सीरीज़ नाश्ता अशुरू की, तो कर्णा ने बिना उम्मीदों के हिस्सा लिया। लेकिन नतीजे चौंकाने वाले थे। नाश्ता के पेपर बिल्कुल उसी पैटर्न, कठिनाई और टाइमिंग के थे जैसे असली नॉर्सेट परीक्षा में होते हैं। मेरे नाश्ता के स्कोर (60-70) और फाइनल प्रीलिम्स स्कोर (66) लगभग समान थे। तभी मुझे यकीन हुआ कि मैं सही दिशा में जा रहा हूँ,” कर्णा कहते हैं।
इसके बाद कर्णा पूरी तरह एनप्रेप इकोसिस्टम का हिस्सा बन गए उन्होंने 119 टेस्ट पेपरों में 4000 से ज्यादा प्रश्न हल किए, जिनमें 74% एक्युरेसी हासिल की। हर गलती को दोहराया, हर टॉपिक को तब तक पढ़ा जब तक गलती की कोई गुंजाइश न रही।
उनके पिता बताते हैं, “वो रातभर पढ़ता था, शाम से लेकर सुबह 8 बजे तक। उसकी टेबल लैंप की रोशनी घर में सबसे देर तक जलती रहती थी।” वही समर्पण आखिरकार रंग लाया जब नॉर्सेट 9 के परिणाम घोषित हुए और कर्णा घोष का नाम देश के शीर्ष सफल अभ्यर्थियों में शामिल था।
एनप्रेप के लिए यह सफलता उनके मिशन को फिर से साकार करती है हर मेहनती छात्र को सुलभ और गुणवत्तापूर्ण तैयारी उपलब्ध कराना। “कर्णा जैसे विद्यार्थी हमें याद दिलाते हैं कि एनप्रेप क्यों बना ताकि हर समर्पित छात्र यह विश्वास कर सके कि रणनीति, निरंतरता और आत्मविश्वास से सफलता पाई जा सकती है,”
कहते हैं एनप्रेप के संस्थापक प्रिंस और उत्कर्ष।
आज कर्णा घोष हजारों नर्सिंग अभ्यर्थियों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उनका संदेश सीधा और सशक्त है “हार मत मानो। एक असफलता के बाद रुकना नहीं। अगर आज नहीं, तो कल सफलता जरूर मिलेगी।”
कर्णा की कहानी सिर्फ एक परीक्षा पास करने की नहीं है, बल्कि यह हिम्मत, बदलाव और फिर से उठ खड़े होने की कहानी है।