
हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है नवरात्रि, यह साल में दो बार आता है, चैत्र मास और अश्विन मास में, जिनमें से अश्विन मास की नवरात्रि को ‘शारदीय नवरात्रि’ के नाम से जाना जाता है। यह पर्व देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों को समर्पित है, जो शक्ति, भक्ति और दैवीय ऊर्जा का प्रतीक हैं। नवरात्रि का हर दिन अपने आप में एक विशेष महत्व रखता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
नवरात्रि का पर्व एक गहरी आध्यात्मिक और पौराणिक कहानी से जुड़ा है। यह पर्व राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की नौ दिवसीय विजय का स्मरण कराता है। महिषासुर को भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान मिला था, जिसके कारण वह देवताओं पर अत्याचार करने लगा। तब सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर मां दुर्गा को उत्पन्न किया। नौ दिनों तक चले इस भयंकर युद्ध के बाद, दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की स्थापना की। इसी कारण, नवरात्रि के बाद दसवें दिन को विजयादशमी’ के रूप में मनाया जाता है।
यह पर्व न केवल एक पौराणिक घटना का स्मरण है, बल्कि यह हमारे भीतर की बुराइयों जैसे- अहंकार, क्रोध, लोभ पर विजय प्राप्त करने का भी प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जिस तरह देवी दुर्गा ने दुष्ट शक्तियों का नाश किया, उसी तरह हमें भी अपनी आंतरिक बुराइयों को खत्म कर आत्मिक शुद्धि की ओर बढ़ना चाहिए। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। हर एक स्वरूप एक विशेष शक्ति और गुण का प्रतिनिधित्व करता है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री, जो दृढ़ता और प्रकृति की शक्ति का प्रतीक हैं।
ब्रह्मचारिणी तपस्या और संयम की देवी।
चंद्रघंटा शांति और वीरता का प्रतीक।
कूष्मांडा ब्रह्मांड की ऊर्जा का स्वरूप।
स्कंदमाता मातृत्व और स्नेह की प्रतीक।
कात्यायनी शक्ति और पराक्रम का स्वरूप।
कालरात्रि अंधकार और अज्ञान का नाश करने वाली।
महागौरी शुद्धता और पवित्रता की देवी।
सिद्धिदात्री सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली।
इन नौ दिनों में भक्तजन उपवास रखते हैं, कलश स्थापना करते हैं और देवी की प्रतिमा की पूजा करते हैं। हर शाम देवी की आरती की जाती है और भजन गाए जाते हैं। आठवें या नौवें दिन कन्या पूजन का आयोजन होता है, जिसमें नौ कन्याओं को देवी का रूप मानकर भोजन कराया जाता है और उनका सम्मान किया जाता है।
नवरात्रि पूरे भारत में विभिन्न तरीकों से मनाई जाती है। गुजरात में यह गरबा और डांडिया रास का सबसे बड़ा उत्सव है, जहां लोग पारंपरिक परिधानों में रात भर नृत्य करते हैं। पश्चिम बंगाल में, इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जहां भव्य पंडालों में देवी दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। यह पर्व सांस्कृतिक मेलजोल, पारिवारिक एकजुटता और सामुदायिक भावना को भी बढ़ावा देता हैं।नवरात्रि एक ऐसा पर्व है जो हमें शक्ति, भक्ति और त्याग का संदेश देता है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि देवी शक्ति हर नारी में निहित है और बुराई पर हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है। यह पर्व हमें अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने और जीवन को एक नई दिशा देने के लिए प्रेरित करता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नवरात्रि का पर्व आध्यात्मिक शुद्धिकरण, महिला सशक्तिकरण और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय के साथ-साथ आंतरिक संतुलन प्राप्त करने पर जोर देता है। यह उत्सव भक्ति, नृत्य, और सामुदायिक एकता का प्रतीक है, जो पारंपरिक रीति-रिवाजों और आधुनिक जीवनशैली में सामंजस्य स्थापित करता है।
यह उत्सव आधुनिक युग में भी हिंदू संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखता है। गरबा, डांडिया जैसे पारंपरिक नृत्यों और दुर्गा पूजा के विस्तृत अनुष्ठानों के माध्यम से युवा पीढ़ी संस्कृति से जुड़ती है।
नवरात्रि का वास्तविक स्वरूप वैदिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और सामाजिक सभी दृष्टियों का संगम है।
वैदिक दृष्टि से यह ऋतु परिवर्तन का यज्ञ और शक्ति उपासना है।
दार्शनिक दृष्टि से यह नौ विकारों का दमन और आत्म-विजय की साधना है।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह शरीर की शुद्धि, मानसिक स्वास्थ्य और सामूहिक चेतना को पोषित करता है।
सामाजिक दृष्टि से यह नारी-शक्ति के सम्मान और समाजिक एकता का पर्व है।
अर्थात्, नवरात्रि केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि जीवन प्रबंधन, आत्म-साधना और समाज-निर्माण का एक पूर्ण दर्शन है।