केन्याई बच्ची पर ‘हैप्लो-आइडेंटिकल’ अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण नवी मुंबई में सफल रहा
नवी मुंबई, दिव्यराष्ट्र:/अपोलो अस्पताल नवी मुंबई ने केन्या की 7 वर्षीय बच्ची पर एक अत्यंत जटिल ‘हैप्लोआइडेंटिकल’ अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न की है। वह लड़की उच्च जोखिम वाले एफएलटी3-पॉजिटिव एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया से पीड़ित थी, जिसे ल्यूकेमिया का एक आक्रामक रूप माना जाता है।
लड़की ने अपने देश (केन्या) में कीमोथेरेपी के पहले दौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिसके बाद उसे आगे के इलाज के लिए नवी मुंबई के अपोलो अस्पताल में रेफर किया गया। वहां किए गए विस्तृत परीक्षणों के बाद यह स्पष्ट हो गया कि उन्हें ‘एफएलटी3-पॉजिटिव एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया’ है। यह बहुत तेजी से फैलने वाला और उच्च जोखिम वाला कैंसर है जिसके लिए गहन उपचार और स्टेम सेल प्रत्यारोपण (अस्थि मज्जा) की आवश्यकता होती है। चूंकि इस प्रक्रिया के लिए पूरी तरह से मेल खाने वाला दाता उपलब्ध नहीं था, इसलिए उनकी मां को ‘आधा मेल खाने वाले’ (हैप्लोआइडेंटिकल) दाता के रूप में चुना गया। हालांकि, लड़की के शरीर में दाता-विशिष्ट एंटीबॉडी के उच्च स्तर के कारण योजना जटिल हो गई, जिससे प्रत्यारोपण अस्वीकृति का खतरा काफी बढ़ गया।
क्योंकि लड़की में एंटीबॉडी का स्तर बहुत अधिक था, इसलिए प्रत्यारोपण टीम ने सबसे पहले एक आक्रामक ‘डीसेंसिटाइजेशन’ योजना लागू की। इसमें प्लाज्मा एक्सचेंज और इम्यूनोथेरेपी के कई दौर शामिल थे। जब एंटीबॉडी का स्तर स्वीकार्य स्तर तक गिर गया, तो अप्रैल 2025 में उस छोटी बच्ची का ‘हैप्लो-आइडेंटिकल’ स्टेम सेल प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया गया।
प्रत्यारोपण के बाद ठीक होने में कई चुनौतियाँ थीं। लड़की को सीएमवी के पुनः सक्रिय होने और ग्रेड 3 ग्राफ्ट-वर्सेस-होस्ट रोग (जीवीएचडी) का सामना करना पड़ा। हालांकि, इन दोनों समस्याओं का समय रहते निदान कर लिया गया और तुरंत उपचार किया गया। बाद में हुई चिकित्सा जांच में ‘पूर्ण दाता काइमेरिज्म’ (सीडीसी) का पता चला, जिसका अर्थ है कि उसके अस्थि मज्जा में कैंसर (ल्यूकेमिया) का कोई भी अंश शेष नहीं है। प्रत्यारोपण के बाद से लगभग पांच महीने बीत चुके हैं, और अब लड़की की हालत चिकित्सकीय रूप से स्थिर है और उसमें अच्छा सुधार दिख रहा है।
यह उपचार अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई की एक बहु-विषयक टीम द्वारा किया गया, जिसमें डॉ. विपिन खंडेलवाल, डॉ. पुनीत जैन, डॉ. दीपाली पाटिल, डॉ. प्रज्ञा और अपोलो चिल्ड्रन्स, नवी मुंबई के विशेषज्ञ शामिल थे। यह मामला अपोलो हॉस्पिटल्स की उच्च जोखिम वाले बाल चिकित्सा ल्यूकेमिया और जटिल अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण को संभालने की विशेषज्ञता को दर्शाता है, खासकर तब जब पूरी तरह से मेल खाने वाले दाता उपलब्ध नहीं होते हैं।