
रेवासा एवं मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास महाराज के सान्निध्य में होगा शोध कार्य
जयपुर, दिव्यराष्ट्र/। विप्र फाउंडेशन द्वारा स्थापित श्री परशुराम ज्ञानपीठ, सेंटर फॉर एक्सीलेंस एंड रिसर्च में एक उच्च स्तरीय शोध संस्थान स्थापित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य है सनातन धर्म और भारतीय ज्ञान परंपरा पर गहन अध्ययन एवं शोध। इस संस्थान को जन-जन के लिए उपयोगी और वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित बनाने की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है।
इस शोध संस्थान के प्रभारी एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रवेश व्यास ने बताया कि सनातन धर्म के संबंध में अधूरी व त्रुटिपूर्ण जानकारी के कारण अनेक भ्रांतियाँ फैल रही हैं। डॉ प्रवेश व्यास ने कहा: “यह शोध संस्थान ऐसे शोधार्थियों की श्रृंखला तैयार करेगा जो गहन अध्ययन कर सनातन धर्म के वास्तविक स्वरूप एवं वैज्ञानिक आधार को समाज तक पहुँचायेंगे। यह प्रयास न केवल बौद्धिक जागरण लाएगा, बल्कि पीढ़ियों को एक समृद्ध सांस्कृतिक आधार भी प्रदान करेगा।”
डॉ. व्यास ने बताया कि संत राजेन्द्रदास महाराज के सान्निध्य में गठित पांच-सदस्यीय समिति विद्वतजनों से संपर्क और मार्गदर्शन प्राप्त कर इस शोध संस्थान की दिशा निर्धारित कर रही है। समिति में शामिल अन्य प्रमुख सदस्य हैं: आचार्य अशोक शास्त्री श्रीगंगानगर, पं. धीरज भारद्वाज जयपुर, रोहन नागर बांसवाड़ा एवं पंडित उमाकांत शर्मा अलवर।
विप्र फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राधेश्याम शर्मा गुरुजी ने बताया कि इस शोध संस्थान की समग्र व्यवस्था विप्र फाउंडेशन की अन्तर्राष्ट्रीय आनुषांगिक शाखा इंटरनेशनल सोसायटी फॉर परशुराम कॉन्ससियसनेस को सौंपी गई है, जो अनुसंधान व प्रशिक्षण का वैश्विक प्रचार एवं प्रकाशन आदि गतिविधियों को समन्वित रूप से संचालित करेगा।
गुरुजी ने बताया कि विप्र फाउंडेशन का यह प्रयास भारत में सनातन संस्कृति के शोध की दिशा में एक नवाचारपूर्ण एवं ऐतिहासिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। श्री परशुराम ज्ञानपीठ की यह गतिविधि निश्चित रूप से देश और समाज को नई दृष्टि, दिशा और ध्येय प्रदान करेगी।