
भारतीय दर्शन और संस्कृति को समर्पित अनूठा आयोजन
जयपुर। एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियरल एंड अलाइड सांइसेज, एमिटी विश्वविद्यालय राजस्थान ने एमिटी सेंटर फॉर पॉजिटिविज्म एंड हैप्पीनेस के सहयोग से ’’वाल्मीकि रामायण के दार्शनिक आयामों की खोजः समकालीन विमर्श के लिए नैतिक, आध्यात्मिक और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि’’ विषय पर नेशनल वर्कशॉप का सफलतापूर्वक आयोजन किया जा रहा है। कार्यशाला को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित किया गया है। कार्यशाला का उद्देश्य वाल्मीकि रामायण में निहित शाश्वत जीवन मूल्यों, आध्यात्मिक शिक्षाओं और दार्शनिक दृष्टिकोणों को पुनः समझना और उन्हें आधुनिक सामाजिक एंव नैतिक संदर्भों में प्रस्तुत करना है। विशेषज्ञ वक्ताओं और विद्वानों ने वर्कशॉप के दौरान रामायण के नैतिक, आध्यात्मिक एवं पारमार्थिक पहलुओं पर गहन विमर्श किया।
कार्यक्रम की शुरुआत यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर (डॉ.) अमित जैन के द्वारा वाल्मीकी रामायण की नैतिक चेतना, नेतृत्व गुणों ओर आधुनिक युग के निर्माण में उसकी भूमिका पर प्रकाश डाला गया। एमिटी यूनिवर्सिटी राजस्थान के प्रो वाइस चांसलर प्रोफेसर (डॉ.) जी.के. आसेरी ने प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन की समकालीन आवश्यकता पर बल दिया। एआईबीएएस की समन्वयक प्रो. (डॉ.) मणि सचदेव ने ‘‘महर्षि वाल्मीकि की रामायण के परिदृश्य की खोज’’ पर अपने संक्षिप्त अवलोकन के साथ विचार-विमर्श किया। आईसीपीआर के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद मिश्रा ने अपने संबोधन में वाल्मीकी रामायण के शाश्वत दार्शनिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इसकी नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षाएं कालातीत है और समाज को दिशा प्रदान करती है। उन्होंने एमिटी यूनिवर्सिटी राजस्थान द्वारा परंपरा और आधुनिक शोध को जोड़ने के प्रयासों की सराहना की।
सरदार पटेल विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर (डॉ.) निरंजन पी. पटेल ने रामायण के पारमार्थिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए इसके नैतिक उत्तरदायित्व, नेतृत्व और दृढ़ता के संदेशों को आज के समय में प्रासंगिक बताया। राजस्थान हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान के सचिव सोमकांत शर्मा ने रामायण को एक जीवंत परंपरा बताते हुए इसे आध्यात्मिक शक्ति, करूणा और सामाजिक सद्भाव का प्रेरक बताया। हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान के राष्ट्रीय समन्वयक गुणवंत सिंह कोठारी ने रामायण को नैतिक ज्ञान और आध्यात्मिक दृष्टि का खजाना बताते हुए सत्य, अनुशासन और मानवता की सेवा के मार्गदर्शन का प्रतीक बताया। उद्घाटन सत्र का समापन डॉ. मोनिका ग्वालानी के धन्यवाद ज्ञापन और राष्ट्रगान के साथ हुआ।